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________________ दूसरा उद्देशक] [71 36. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा, पिलगं वा अरइयं वा अंसियं वा, भगंदलं वा, अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्यजाएणं, आच्छिदित्ता विच्छिदित्ता पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता विसोहिता, सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ। 37. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा, पिलगं वा, अरइयं वा, अंसियं वा, भगंदलं का, अण्णयरेणं तिक्लेणं सत्थजाएणं आच्छिदित्ता विच्छिदित्ता पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता विसोहित्ता, सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलित्ता पधोवित्ता अण्णयरेणं आलेवण-जाएणं आलिपेज्ज वा विलिपेज्ज वा आलिपंतं वा विलिपंतं वा साइज्जइ। 38. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा, पिलगं वा, अरइयं वा, अंसियं वा, भगंदलं वा, अण्णयरेणं तिक्क्षणं सत्थजाएणं आच्छिदित्ता विच्छिदित्ता पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता विसोहिता, सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलिता पधोवित्ता, अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपित्ता-विलिपित्ता तेल्लेण वा जाव णवणीएण वा अन्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेतं वा मक्खेतं वा साइज्जइ / 39. जे भिक्खू अप्पणो कार्यसि गंडं वा, पिलगं वा, अरइयं वा अंसियं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं तिक्खेणं सत्थ-जाएणं, आच्छिदित्ता विच्छिदित्ता, पूर्व वा सोणियं वा णीहरित्ता-विसोहित्ता, सोओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलित्ता पधोवित्ता, अण्णयरेणं आलेवण-जाएणं आलिंपित्ता-विलिपित्ता तेल्लेण वा जाव णवणीएण वा अन्भंगेत्ता मक्खेत्ता, अण्णयरेणं धूवजाएणं धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा धूवेतं वा पधूवेतं वा साइज्जइ। 34. जो भिक्षु अपने शरीर पर हुए गंडमाल, पैरों आदि पर हुए गुमड़े, छोटी-छोटी फुसिया (अलाइयाँ) मसा तथा भगंदर आदि को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से एक बार काटता है या बार-बार काटता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है / 35. जो भिक्षु अपने शरीर के गंडमाल, गुमड़े, फुसियों मसे या भगंदर को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से काटकर पीप या रक्त निकालता है या शोधन करता है, या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। 36. जो भिक्षु अपने शरीर के गंडमाल, गूमड़े, फुसियों, मसे या भगंदर को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से काटकर, पीप, खून निकालकर, शीतल या उष्ण अचित्त जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है / 37. जो भिक्षु अपने शरीर के गंडमाल, गूमड़े, फुसियों, मसे या भगंदर को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से काटकर, पीप, खून निकालकर, शीतल या उष्ण अचित्त जल से धोकर किसी भी प्रकार का लेप-मलहम लगाता है या बार-बार लगाता या लगाने वाले का अनुमोदन करता है। 36. जो भिक्ष अपने शरीर के गंडमाल, गूमड़े, फुसियों, मसे या भगंदर को किसी तीक्ष्ण शस्त्र से काटकर, पीप, खून निकालकर, शीतल या उष्ण अचित्त जल से धोकर किसी भी प्रकार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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