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________________ दूसरा उद्देशक] [67 संखडी गमनप्रायश्चित्त 14. जे भिक्खू संखडि-पलोयणाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेइ पडिगाहेंतं वा साइज्जइ। जो भिक्षु जीमनवार के लिये बनी खाद्य सामग्री को देखते हुये अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--'संखडि-पलोयणा-" संखडिसामिणा अणुण्णातो तम्मि रसवईए अणुप्पविसित्ता ओदणादि पलोइउं भणति-'इतो य इतो पयच्छाहि "त्ति एस पलोयणा" जो एवं असणादि गिण्हति तस्स मास लहुं / चूणि पृष्ठ-२०६ // रसोई घर में पहुँच कर चांवल आदि वस्तुओं को देखकर “यह दो या इसमें से दो" इस प्रकार कहना संखडिप्रलोकन पूर्वक आहार ग्रहण करना कहा गया है। ‘संखडि-जीमनवार-जहां पर अत्यधिक प्रारंभ से सैकड़ों व्यक्तियों के लिये आहार बना हो ऐसे जीमनवार में भिक्षा के लिये जाने का या उस दिशा में जाने का बृहत्कल्प सूत्र उद्देशा 1 तथा आचा. श्रु. 2 अ. 1 उ. 2-3 में निषेध किया है व उससे होने वाले अनिष्टों का कथन भी मूल पाठ में है / अतः यहाँ प्रायश्चित्त कहा गया है। जीमणवार में अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री बनती देखना व इच्छित वस्तु लेना, इस विषय का स्पष्टीकरण करने के लिये इस सूत्र में "संखडी-पलोयणाए" शब्द का प्रयोग किया गया है। अतः संखडी में भिक्षा के लिये जाने का और वहां से आहार ग्रहण करने का इस सूत्र में प्रायश्चित्त है, ऐसा समझना चाहिये / अभिहत आहार ग्रहण प्रायश्चित्त 15. जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवायपडियाएअणपविढे समाणे परं ति-घरंतराओ असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा अभिहडं आहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / जो भिक्ष गाथापति कुल में आहार के लिये प्रवेश करके तीन घर अर्थात् तीन कमरे से अधिक दूर से सामने लाकर देते हुए अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य को ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन- जिस कमरे से आहारादि ग्रहण करना हो, उसी में या उसके बाहर खड़ा रह कर ही आहारादि ग्रहण करना चाहिये। किन्तु दशवैकालिक सूत्र अध्ययन 5 उद्देशक 1 में कहा है कि "कुलस्स भूमिं जाणित्ता, मियं भूमि परक्कमे" अर्थात् जिन कुलों में साधु को जितनी सीमा तक प्रवेश अनुज्ञात हो उस मर्यादित स्थान तक ही जाना चाहिये / इस कारण से तथा अन्य किसी विशेष कारण से उस स्थान तक जाना न हो सके तो तीन कमरे जितनी दूरी से गृहस्थ लाकर दे तो एषणा दोषों को टालकर ग्रहण किया जा सकता है। तीन घर [कमरे] जितने दूर स्थल से लाये गये आहार ग्रहण की अनुज्ञा के साथ "अदिट्ठहडाए" दोष युक्त ग्रहण की अनुज्ञा नहीं है, यह भी ध्यान में रखना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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