SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [निशीथसूत्र "कौतुक" में---हास्य, कौतूहल, जिज्ञासा या परीक्षा करने के संकल्प आदि भावों का समावेश समझ लेना चाहिये / यथा--- 'देखें-- यह दाता देता है या नहीं" / इस प्रकार की कौतूहल बुद्धि से भी नाम निर्देश पूर्वक वस्तु का मांगना भिक्षावृत्ति में प्रविधि है। अतः उसका इस सूत्रचतुष्क से प्रायश्चित्त समझना चाहिये / दशवैकालिक सूत्र अध्ययन 10 गाथा. 13 में कहा है "अनियाणे अकोउहले जे स भिक्खू" जो निदान-संकल्प रहित एवं कौतूहल वृत्ति रहित होता है वह भिक्षु है। साधु अदीन वृत्ति से भिक्षाचरी करें, यह पूर्वोक्त चार सूत्रों का सार है और अकौतूहल वृत्ति से भिक्षाचरी करें यह इन सूत्रों का सार है। तृतीय सूत्रचतुष्क में पूर्व निर्दिष्ट दीन वृत्ति व कौतूहल वृत्ति के साथ चित्त की चंचलता व खुशामदी वृत्ति का निर्देश किया गया है / इसे कौतूहल वृत्ति की अत्यधिकता भी कह सकते हैं। सूत्रोक्त स्थानों में भिक्षा हेतु प्रविष्ट भिक्षु गृहस्थ को घर के किसी अन्य कक्ष से या अदृष्ट स्थान से या अति दूर स्थान से प्रशनादि लाकर देने पर निषेध कर देता है कि मुझे नहीं कल्पता है, जिससे दाता लौट जाता है किन्तु विचार बदल जाने पर भिक्षु पुनः उसे कहे कि-"लामो तुम्हारी भावना व श्रम निष्फल न हो इसलिये ले लेता हूँ" इत्यादि भाव इन चार सूत्रों में समाविष्ट हैं। ऐसी अविधि से की गई याचना में भाषा समिति भी दूषित होती है / इस प्रकार इन 12 सूत्रों में 1. मांगकर याचना करने का, 2. कौतूहल से मांग कर याचना करने का और 3. अत्यधिक कौतूहल वृत्ति से याचना करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। निषिद्ध गृहप्रवेश-प्रायश्चित्त 13. जे भिक्खू गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए पक्ढेि पडियाइक्खए समाणे दोच्चंपि तमेव कुलं अणुष्पविसइ, अणुप्पविसंतं वा साइज्जइ / जो भिक्षु गाथापति कुल में आहार के लिये प्रवेश करने पर गृहस्थ के मना करने के बाद भी पुनः उसी घर में प्रवेश करता है या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-पूर्व सूत्र में स्वयं भिक्षु के द्वारा निषिद्ध आहार का पुनः अविधि से याचना करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। इस सूत्र में गहस्थ निषेध कर दे कि-'जाओ, अन्यत्र जानो, यहां कुछ नहीं है। "इत्यादि कहने पर भी पुनः उसी घर में कुछ समय बाद जाए / अथवा जो गृहस्थ यह कह दे कि" "हमारे घर कभी नहीं आना" फिर भी उसके घर जाए तो यह भिक्षु का अविवेक है / इसी अविवेक का इस सूत्र में प्रायश्चित्त कहा गया है। इस अविवेक से दाता का रुष्ट होना, शंकित होना व अनुचित व्यवहार करना आदि दोषों की संभावना रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003492
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages567
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy