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________________ वर्ग 3 : प्रथम अध्ययन] था। माहेन्द्रध्वज की ऊँचाई पच्चीस योजन की थी। इसके अतिरिक्त शेष सभी वर्णन सूर्याभ विमान के समान समझना चाहिए, यावत् जिस प्रकार से सूर्याभदेव भगवान् के पास आया, नाट्यविधि प्रदर्शित की और वापिस लौट गया, वही सब चन्द्रदेव के विषय में भी जान लेना चाहिए। 'भगवन !' इस प्रकार से आमंत्रित कर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को बंदननमस्कार किया, वंदन-नमस्कार करके निवेदन किया-भंते ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चंद्र द्वारा विवित वह सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य दैविक प्रभाव कहाँ चले गये ? कहाँ प्रविष्ट हो गये समा गये ? भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम ! चन्द्र द्वारा विकुक्ति वह सब दिव्य ऋद्धि प्रादि उसके शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई–अन्तर्लीन हो गई। गौतम-भदन्त ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि वह शरीर में चली गई, शरीर में अन्तर्लीन हो गई ? भगवान् गौतम! जैसे कोई एक भीतर-बाहर गोबर आदि से लिपी-पुती, बाहर चारों ओर एक परकोटे से घिरी हुई, गुप्त द्वारों वाली और उनमें भी सघन किवाड़ लगे हुए हैं, अतएव निर्वात-वायु का प्रवेश भी होना जिसमें अशक्य है, ऐसी गहरी विशाल कुटाकार-पर्वत-शिखर के र वाली शाला हो और उस कटाकार शाला के समीप एक बड़ा जनसमह बैठा हो। वह अाकाश में अपनी ओर आते हुए एक बहुत बड़े मेघपटल को अथवा जलवर्षक बादल को अथवा प्रचंड अांधी को देखे तो जैसे वह जनसमूह उस कुटाकारशाला में समा जाता है, उसी प्रकार आयुष्मन् गौतम ! ज्योतिष्कराज चन्द्र को वह दिव्य देव-ऋद्धि आदि उसी के शरीर में प्रविष्ट हो गई--अन्तर्लीन हो गई, ऐसा मैंने कहा है। गौतम--भगवन् ! उस देव को इस प्रकार की वह दिव्य देव-ऋद्धि यावत् दिव्य देवानुभाव कैसे मिला है ? उसने उसे कैसे प्राप्त किया है ? किस तरह से अधिगत किया है ? पूर्वभव में वह कौन था? उसका क्या नाम और गोत्र था ? किस ग्राम, नगर, निगम (व्यापारप्रधान नगर) राजधानी, खेट (खेड़े) कर्वट (कम ऊंचे प्राकार से वेष्टित ग्राम), मडंव (जिसके आसपास चारों ओर एक योजन तक दूसरा कोई गांव न हो), पत्तन (समुद्र का समीपवर्ती ग्राम–नगर), द्रोणमुख (जल और स्थल मार्गों से जुड़ा हुआ नगर), प्राकर (खानों वाला स्थान-नगर) आश्रम (ऋषियों का आवासस्थान), संबाह (यात्रियों, पथिकों के विश्राम योग्य ग्राम अथवा नगर) अथवा सन्निवेश (साधारण जनों की बस्ती) का निवासी था? उसने ऐसा क्या दान दिया? ऐसा क्या भोग किया? ऐसा क्या कार्य किया? ऐसा कौन सा आचरण किया ? और कौन से तथारूप श्रमण अथवा माहण से ऐसा कौन सा एक भी धार्मिक प्रार्य सुवचन सुना और अवधारित किया कि जिससे उस देव ने वह दिव्य देव-ऋद्धि यावत् दैविक प्रभाव उपाजित किया है, प्राप्त किया है, अधिगत किया है ? श्रावस्ती नगरी का अंगति गाथापति 3. 'गोयमा' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमन्तेत्ता एवं वयासी-एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थो नाम नयरी होत्था। कोट्ठए चेइए / तत्थ णं सावत्थीए प्राई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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