________________ वर्ग 1 : प्रथम अध्ययन] [35 आभूषण धारण किए / हार (अठारह लड़ों का हार) अर्धहार (नौ लड़ों का हार) त्रिसर (तीन लड़ों का हार) और लम्बे-लटकते कटिसूत्र-करधनी से अपने को सुशोभित किया; गले में अवेयक (कंठा) आदि आभूषण धारण किए, अंगुलियों में अंगूठी पहनीं। इस प्रकार सुललित अंगों को सुन्दर आभूषणों से आभूषित किया। मणिमय कंकणों, त्रुटितों एवं भुजबन्दों से भुजाएँ स्तम्भित हो गई, जिससे उसकी शोभा और अधिक बढ़ गई। कुंडलों से उसका मुख चमक गया, मुकुट से मस्तक देदीप्यमान हो गया। हारों से आच्छादित उसका वक्षस्थल सुन्दर प्रतीत हो रहा था। लंबे लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय (दुपट्ट) के रूप में धारण किया। मुद्रिकाओं से अंगुलियां पीतवर्ण-सी दिखती थीं / सुयोग्य शिल्पियों द्वारा निर्मित, स्वर्ण एवं मणियों के सुयोग से सुरचित, विमल महाह-महान् श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा धारण करने योग्य, सुश्लिष्ट-भली प्रकार से सांधा हुआ; विशिष्ट-उत्कृष्ट, प्रशस्त आकारयुक्त; वीरवलय (विशेष प्रकार का कंकण) धारण किया। अधिक क्या कहा जाए, कल्प वृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित नरेन्द्र (कूणिक) कोरण्ट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर, दोनों पाश्वों में चार चामरों से विजाता हुग्रा, लोगों द्वारा मंगलमय जय-जयकार किया जाता हुआ, अनेक गणनायकों, दंडनायकों, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंविक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री, गणक, दौवारिक, अमात्य, चेट, पीठमदंक, नागरिक, निगमवासी, श्रेष्ठी, सेनापति सार्थवाह, दूत, संधिपाल, आदिकों से घिरा हुमा, श्वेत-धवल महामेघ से निकले हुए देदीप्यमान ग्रहों एवं नक्षत्रमंडल के मध्य चन्द्रमा के सदृश प्रियदर्शन वह नरपति स्नानगृह से बाहर निकला। निकलकर जहाँ बाह्य सभाभवन था वहाँ प्राया, यावत् अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल उच्च गजपति पर वह नरपति प्रारूढ हुआ। ___ तत्पश्चात् कुणिक राजा तीन हजार हाथियों (तीन हजार रथों, तीन हजार अश्वों, तीस कोटि पदातियों के साथ) यावत् वाद्यधोषपूर्वक चंपा नगरी के मध्य भाग में से निकला, निकलकर जहाँ काल आदि दस कुमार ठहरे थे वहाँ पहुँचा और काल आदि दस कुमारों से मिला / इसके बाद तेतीस हजार हाथियों, तेतीस हजार घोड़ों, तेतीस हजार रथों और तेतीस कोटि मनुष्यों से घिर कर सर्व ऋद्धि यावत् कोलाहल पूर्वक सुविधाजनक पड़ाव डालता हुआ, सुखपूर्वक प्रातः कलेवा आदि करता हुमा; अति विकट अन्तरावास (पड़ाव) न कर किन्तु निकट-निकट विश्राम करते हुए अंग जनपद के मध्य भाग में से होते हुए जहाँ विदेह जनपद था, उसमें भी जहाँ वैशाली नगरी थी, उस ओर चलने के लिए उद्यत हुग्रा। चेटक का गण-राजाओं से परामर्श ___31. तए णं से चेडए राया इमोसे कहाए लट्ठ समाणे नव मल्लई नव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायानो सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासी-"एवं खलु, देवाणुप्पिया ! वेहल्ले कुमारे कणियस्स रन्नो असंविदिएणं सेयणगं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय इहं हव्वमागए / तए णं कूणिएणं सेयणगस्स अट्ठारसवंकस्स य अट्टाए तो दूया पेसिया / ते य मए इमेणं कारणेणं पडिसेहिया। तए णं से कूणिए ममं एयम8 अपडिसुणमाणे चाउरङ्गिणीए सेणाए सद्धि संपरिवुडे जुद्धसज्जे इहं हव्यमागच्छइ / तं कि णं देवाणुप्पिया, सेयणगं अट्ठारसवंकं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामो? वेहल्लं कुमारं पेसेमो ? उदाहु जुज्झित्था" ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org