________________ 30 [निरयावलिकासूत्र तए णं से दूए कूणियस्स रन्नो, तहेव जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु सामी, कणिए राया विन्नवेइ--'जाणि काणि, वेहल्लं कुमारं पेसेह" तए णं से चेडए राया तं दूयं एवं वयासी-"जइ चेव णं देवाणुप्पिया, कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, जहा पढमं [जाव] वेहल्लं च कुमारं पेसेमि"। तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ / तए णं से दूए [जाव] कुणियस्स रन्नो वद्धावेत्ता एवं वयासी-"चेडए राया आणवेइ–'जह चेव णं, देवाणुप्पिया ! कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, [जाव] वेहल्लं कुमारं पेसेमि' / तं न देइ णं, सामी, वेडए राया सेयणगं गंधहत्थि अट्ठारसर्वकं च हारं, बेहल्लं कुमारं नो पेसेइ"। [26] दूत का निवेदन सुनने के पश्चात् चेटक राजा ने दूत से इस प्रकार कहा–'देवानुप्रिय ! जैसे कूणिक राजा श्रेणिक राजा का पुत्र और चेलना देवी का अंगजात तथा मेरा दौहित्र है, वैसे ही वेहल्लकुमार भी श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज और मेरा दौहित्र है / श्रेणिक राजा ने अपने जीवन-काल में ही वेहल्ल कुमार को सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। इसलिए यदि कूणिक राजा वेहल्ल कुमार को राज्य और जनपद का प्राधा भाग दे तो मैं सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कुणिक राजा को लोटा दूंगा तथा वेहल्ल कुमार को भेज दूंगा।' / तत्पश्चात् अर्थात् इस प्रकार का उत्तर देकर उस दूत को सत्कार-सम्मान करके विदा कर दिया। इसके बाद चेटक राजा द्वारा विदा किया गया वह दूत जहाँ चार घंटों वाला अश्व-रथ था, वहाँ आया। आकर उस. चार घंटों वाले अश्व-रथ पर आरूढ हुआ / वैशाली नगरी के बीच से निकला / निकलकर साताकारी वसतिकाओं में विश्राम करता हुआ प्रात: कलेवा करता हुआ (यथासमय चम्पा नगरी में पहुंचा / पहुंचकर) यावत् (कूणिक राजा के समक्ष उपस्थित हुआ और उसे) बधाकर इस प्रकार निवेदन किया-स्वामिन् ! चेटक राजा ने फरमाया है जैसे श्रेणिक राजा का पुत्र और चेलना देवी का अंगज कूणिक राजा मेरा दोहिता है वैसे ही वेहल्ल कुमार भी है इत्यादि / ' यहाँ चेटक का पूर्वोक्त कथन सब कहना चाहिए / इसलिए हे स्वामिन् ! चेटक राजा ने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार नहीं दिया है और न हो वेहल्ल कुमार को भेजा है। चेटक का उत्तर सुनकर कूणिक राजा ने दूसरी बार भी दूत को बुलाकर इस प्रकार कहादेवानप्रिय ! तुम पुनः वैशाली नगरी जाम्रो। वहाँ तुम मेरे नाना चेटकराज से यावत निवेदन करो-स्वामिन् ! कूणिक राजा यह प्रार्थना करता है-'जो कोई भी रत्न प्राप्त होते हैं, वे सब राजकुलानुगामी-राजा के अधिकार में होते हैं / श्रेणिक राजा ने राज्य-शासन करते हुए, प्रजा का पालन करते हुए दो रत्न प्राप्त किए थे-सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार / इसलिए स्वामिन् ! आप राजकुल-परंपरागत स्थिति-मर्यादा को भंग नहीं करते हुए सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को वापिस कूणिक राजा को लौटा दें और वेहल्ल कुमार को भी भेज दें।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org