SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट 1] .. [129 गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव हस्थिणापुरे नगरे, जेणेव सहसम्बवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छह २त्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह। तए णं हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडगतिय० जाव परिसा पज्जुवासइ / [24] उस काल और उस समय केशी स्वामी के समान जातिसम्पन्न आदि विशेषणों से युक्त अर्हत् विमल के प्रपौत्र शिष्य (शिष्यानुशिष्य) धर्मघोष नामक अनगार यावत् पांच सौ अनगारों के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए ग्रामानुग्राम गमन करते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह लेकर संयम और तप से प्रात्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तब हस्तिनापुर नगर के शृगाटकों, त्रिकों आदि में उनके आगमन की चर्चा होने लगी यावत् परिषद पर्युपासना करने लगी। 25. तए णं तस्स महब्बलस्त कुमारस्स तं महया जणसई वा जणवहं वा एवं जहा जमाली तहेव चिन्ता, तहेव कञ्चुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, कञ्चुइज्जपुरिसो वि तहेव अक्खाइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जाय निग्गच्छइ / एवं खलु देवाणुप्पिया, विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे नाम अणगारे, सेसं तं चेव जाव सो वि तहेव रहवरेणं निग्गच्छइ / धम्मकहा जहा केसिसामिस्स / सो वि तहेव अम्मापियरो आपुच्छइ, नवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अन्तियं मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पध्वइत्तए। तहेव वृत्तपडिवुत्तया, नवरं इमानो य ते जाया, विउलरायकुलवालियाओ, कला० सेसं तं चेव जाव ताहे अकामाइं चेव महम्बलकुमारं एवं * वयासी-'तं इच्छामो ते, जाया, एगदिवसमावि रज्जसिरि पासित्तए'। तए णं से महब्बले कुमारे अम्मापियराणं वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ / [25] तत्पश्चात् उस महाबल कुमार ने उस महान् जन-कोलाहल को सुनकर और जनसमूह एक ही दिशा में जाते देखकर जमालिकुमार के समान विचार किया। कंचुकी पुरुषों को बुलाया / कंचुको पुरुषों ने उसी प्रकार कारण बतलाया। किन्तु इतना अन्तर है कि उन कंचुकी पुरुषों ने धर्मघोष अनगार के आगमन के निश्चित समाचार जानकर हाथ जोड़ महाबल कुमार से निवेदन किया--देवानुप्रिय ! अर्हत् विमल प्रभु के प्रपौत्र शिष्य धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं, यावत् जनसमूह उनकी उपासना करने जा रहा है। शेष वर्णन उसी प्रकार है यावत् वह महाबल कुमार भी जमाली की तरह उत्तम रथ पर आरूढ़ होकर दर्शन-वंदनार्थ निकला। धर्मघोष अनगार ने केशी स्वामी के समान धर्मोपदेश दिया। उस महाबल कुमार ने भी उसी प्रकार माता-पिता से पूछा किन्तु अन्तर यह है कि धर्मघोष अनगार के पास मुडित होकर अगार त्याग कर अनगार प्रव्रज्या से प्रवजित होना चाहता हूँ, ऐसा कहा / जमालिकुमार के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता के बीच उत्तर-प्रत्युत्तर हुए यावत् उन्होंने कहा हे पुत्र ! यह विपुल धन और उत्तम राज्यकुल में उत्पन्न हुई, कलाओं में कुशल आठ बालाओं को त्याग कर अभी दीक्षा मत लो आदि यावत् जब माता-पिता उसे समझाने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003487
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages178
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy