________________ 118] [महाबल शैया पर बैठकर इस प्रकार विचार करने लगी-यह मेरा उत्तम, प्रधान, मंगलरूप स्वप्न अन्य दूसरे पाप-स्वप्नों से प्रतिहत न हो जाए ! ऐसा सोचकर देव-गुरुजन संबन्धी प्रशस्त मांगलिक कथाओं से जागरण करती रही 1 9. तए णं से बले राया कोडुम्बियपुरिसे सहावेह, २त्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव, मो देवाणुप्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गन्धोदयसित्तसुइअसंमज्जिवलितं सुगन्धवरपञ्चवण्णपुप्फोक्यारकलियं कालागरुपवरकुदुरुक्क० जाब गन्धवट्टिभूयं करेह य करावेह य, २त्ता सीहासणं रएह, 2 त्ता ममेयं जाव पच्चप्पिणह / तए णं ते कोडुम्बिय० नाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं जाव पच्चप्पिणन्ति। [6] तत्पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक (सेवक) पुरुषों को बुलाया और बुलाकर उनको यह प्राज्ञा दी-देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही आज बाहर की उपस्थानशाला (सभाभवन) को विशेष रूप से गंधोदक का छिड़काव करके स्वच्छ करो, लीप-पोतकर शुद्ध करो, सुगंधित और उत्तम पंच वर्ण के पुष्पों से उपचरित करो-सजाओ यावत् काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुष्क, तुरुष्क और धूप को जलाकर गंधतिका के समान करो और करवाओ। फिर सिंहासन रखो और ऐसा करके आज्ञानुरूप कार्य होने की मुझे सूचना दो। इसके बाद उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् प्रादेश स्वीकर करके शीघ्र ही बाहरी उपस्थानशाला को विशेष रूप से स्वच्छ आदि करके आज्ञानुसार कार्य हो जाने की सूचना दी। 10. तए गं से बले राया पच्चूसकालसमयंसि सणिज्जाओ अमुळेइ, २त्ता पायपीढायो पच्चोरुहइ, 2 ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, अट्टणसालं अणुपविसइ, जहा उववाइए, तहेव मज्जणघरे, जाव ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, 2 त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, २त्ता सोहासणवरंसि पुरस्थाभिमुहे निसीयइ, 2 त्ता अप्पणो उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवत्थपच्चत्थुथाई सिद्धत्थगकयमङ्गलोक्याराई रयावेह, 2 त्ता प्रप्पणो अदूरसामन्ते नाणामणिरयणमण्डियं अहियपेच्छणिज्जं महग्धवरपट्टणुग्गयं सहपट्टबहुत्तिसयचित्तताणं ईहामियउसभ जाव भत्तिचित्तं अभिन्तरियं जवणियं अञ्छावेइ, 2 त्ता नाणामणिरयणत्तिचित्तं प्रत्थरयमउयमसूरगोत्थयं सेयवत्थपच्चत्युयं अङ्गसुहफासुयं सुमउयं पभावईए देवीए भद्दासणं रयावेइ, 2 ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, 2 ता एवं वयासी [10] तदनन्तर प्रातःकाल होने पर बल राजा अपनी शय्या से उठा और पादपीठ से नीचे उतरा। उतरकर जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ गया। जाकर व्यायामशाला में प्रवेश किया और जैसा औपपातिक सूत्र में व्यायामशाला और स्नानगृह संबन्धी कूणिक राजाकृत कार्यों का वर्णन है, तदनुरूप करके यावत् चन्द्र के समान प्रियदर्शन नरपति स्नानगृह से बाहर निकला। निकलकर जहाँ सभाभवन था, वहाँ आया और आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर बैठ गया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org