________________ वण्हिदसाओ-वह्निदशा प्रथम अध्ययन उत्क्षेप 1. उक्खेवमो-जह णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं उवङ्गाणं चउत्थस्स णं पुप्फचूलियाणं अयमठे पन्नत्ते, पंचमस्स गं भंते ! वग्गस्स उवगाणं वहिदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अछे पण्णते? [1] (श्रीजम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-) भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए भगवान् महावीर ने चतुर्थ उपांग पुष्पचलिका का यह अर्थ कहा है तो हे भदन्त ! श्रमण यावत् मोक्षसंप्राप्त भगवान् महावीर ने पांचवें वहिदसाम्रो [अन्धकवृष्णिदशा] नामक उपांग-वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? 2. एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं उबङ्गाणं पंचमस्स गं वहिवसाणं दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--- निसढे-माअणि-वह-वहे पगया जुत्ती दसरहे दढरहे य / महाधणू सत्तधणू दसधणू नामे सयधणू य॥ [2] (सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया--) हे आयुष्मन् जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने पांचवें वह्निदशा उपांग के बारह अध्ययन कहे हैं / उनके नाम इस प्रकार हैं--- (1) निषध (2) मातलि (3) वह (4) वहे (5) पगया (6) युक्ति (7) दशरथ (5) दृढ रथ (8) महाधन्वा (10) सप्तधन्वा (11) दशधन्वा और (12) शतधन्वा / 3. 'जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवङ्गाणं पंचमस्स वग्गस्स वहिदसाणं दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते' ? हे भदन्त ! यदि श्रमण यावत् मोक्षसंप्राप्त भगवान ने वह्निदशा नामक पांचवें उपांग-वर्ग के बारह अध्ययन प्ररूपित किए हैं तो हे भगवन् ! श्रमण यावत् संप्राप्त भगवान् ने उनमें से प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? 4. तए णं से सुहम्मे जम्बू अणगारं एवं वयासी[४] तब आर्य सुधर्मा ने उत्तर में जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org