________________ वर्ग 4: प्रथम अध्ययन] दारिका ने वंदना-नमस्कार किया और इस प्रकार उद्गार प्रकट किए-'भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ-श्रद्धालु हूँ-यावत् निर्ग्रन्थ-प्रवचन को अंगीकार करने के लिए तत्पर हूँ। वह वैसा ही है, जैसा आपने विवेचन किया है, किन्तु हे भदन्त ! माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर लू, तब मैं यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। अर्हत् प्रभु ने उत्तर दिया-- देवानुप्रिये ! इच्छानुसार करो।' भूता का प्रव्रज्याग्रहण तए णं सा भूया दारिया तमेव धम्मिथं जाणप्पयरं [जाव] दुरूहइ, 2 ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागया। रायगिहं नयरं मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागया / रहाओ पच्चोरुहित्ता जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागया / करयल०, जहा जमाली, प्रापुच्छइ / 'अहासुहं देवाणुप्पिए।' ___तए णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, मित्तनाइ० आमन्तेइ, 2 ता जाव जिमियभुत्तुत्तरकाले सुईभूए निक्खमणमाणेत्ता कोडम्बियपुरिसे सद्दावेद, 2 त्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उवट्ठवेह, 2 ता जाव पच्चप्पिणह।' तए णं ते [जाव] पच्चप्पिणन्ति / तए णं से सुदसणे गाहावई भूयं दारियं व्हायं विभूसियसरीरं पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहइ, 2 ता मित्तनाइ० [जाव] रवेणं रायगिहं नयरं मझमझेणं, जेणेव गुणसिलए चेइए, तेणेव उवागए, छत्ताईए तित्थयराइसए पासइ, 2 ता सीयं ठावेइ, 2 ता भूयं दारियं सीयाओ पच्चारुहेइ / तए णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरनो काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए, तेणेव उवागए तिक्खुत्तो वन्दइ, नमसइ, 2 त्ता एवं क्यासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! भूया दारिया अम्हं एगा धूया, इट्ठा / एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउठिवग्गा भीया [जाव] देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा [जाव] पव्वयइ / तं एयं णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं दलयामो / पडिच्छन्तु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्वं"। "महासुह, देवाणुप्पिया"। तए णं सा भूया दारिया पासेणं अरहया ...." एवं वुत्ता समाणी हट्ठा, उत्तरपुरथिम, सयमेय आमरणमल्लालंकारं उम्मुया, जहा देवाणन्दा, पुप्फचूलाणं अन्तिए [जाव] गुत्तबम्भयारिणी। (7) इसके बाद वह भूता दारिका यावत् उसी धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ हुई / प्रारूढ होकर जहाँ राजगृह नगर था, वहाँ आई और राजगृह नगर के मध्य भाग में होकर जहाँ अपना आवास स्थान-घर था, वहाँ आई। पाकर रथ से नीचे उतर कर जहाँ माता-पिता थे उनके समीप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org