________________ [पुष्पिका सात शिक्षात्रतों के दो प्रकार हैं-गुणव्रत और शिक्षाबत / गुणवत तीन और शिक्षाबत चार हैं / इन दोनों के अभ्यास एवं साधना से अणुव्रतों के गुणात्मक विकास में सहायता मिलती है / अणुव्रत आदि रूप बारह प्रकार के श्रावक धर्म की सांगोपांग जानकारी के लिए उपासकदशांगसूत्र का अध्ययन करना चाहिए। सोमा की प्रव्रज्या 52. तए णं ताओ सुब्वयाओ अज्जानो अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुटिव ....."जाव विहरंति / तए णं सा सोमा माहणी इमोसे कहाए लट्ठा समाणी हट्ठा हाया तहेव निम्गया, जाव बंदइ, नमसइ, 2 धम्म सोच्चा [जाव] नवरं "रटकूडं आपुच्छामि, तए णं पव्वयामि"। "अहासुहं ......." / तए णं सा सोमा माहणी सुध्वयं अज्जं वंदइ नमसइ, 2 त्ता सुध्वयाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ २त्ता जेणेव सए गिहे जेणेव रट्टकूडे, तेणेव उवागच्छइ, 2 ता करयल० तहेव प्रापुच्छइ [जाब] पव्वइत्तए। "अहासुहं, देवाणुप्पिए ! मा पडिबन्धं / ..." / तए णं रहकूडे विउलं असणं, तहेव जाव पुन्वभवे सुभद्दा, [जाव] अज्जा जाया इरियासमिया [जाव] गुत्तबम्भयारिणी। [52) इसके बाद वे सुव्रता प्रार्या किसी समय पूर्वानुपूर्वी के क्रम से गमन करती हुई, ग्रामानुग्राम में विचरण करती हुई यावत् पुन: विभेल संनिवेश में आएंगी। तब वह सोमा ब्राह्मणो इस संवाद को सूनकर हर्षित एवं संतुष्ट हो, स्नान कर तथा सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो पूर्व की तरह दासियों सहित दर्शनार्थ निकलेगी यावत् वंदन-नमस्कार करेगी। वंदन-नमस्कार करके धर्म श्रवण कर यावत् सुव्रता ग्रार्या से कहेगी—मैं राष्ट्रकूट से पूछकर आपके पास मुडित होकर प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूँ। तब सुव्रता आर्या उससे कहेंगी-देवानुप्रिये ! तुम्हें जिसमें सुख हो वैसा करो, किन्तु शुभ कार्य में विलम्ब मत करो। इसके बाद सोमा माहणी उन सुव्रता आर्याओं को बंदन-नमस्कार करके उनके पास से निकलेगी और जहाँ अपना घर और उसमें जहाँ राष्ट्रकूट होगा, वहाँ आएगी। आकर दोनों हाथ जोड़कर पूर्व के समान पूछेगी कि आपकी आज्ञा लेकर प्रानगारिक प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। ___ इस बात को सुनकर राष्ट्रकूट कहेगा-देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो किन्तु इस कार्य में प्रमाद-विलम्ब मत करो। इसके पश्चात् राष्ट्रकूट विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम चार प्रकार के भोजन बनवाकर अपने मित्र, जाति, बांधव, स्वजन, संबन्धियों को आमंत्रित करेगा। उनका सत्कार सन्मान करेगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org