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________________ अपनी शक्ति का गर्व है। वह सभी को दबाकर अपने अधीन रखना चाहते हैं। यह शक्ति का सदुपयोग नहीं, दुरुपयोग है। हमारे पूज्य पिताश्री ने जो सुव्यवस्था स्थापित की थी, उसका यह स्पष्ट अतिक्रमण है / मैं इस अन्याय को सहन नहीं कर सकता / मैं बता दूंगा कि प्राक्रमण करना कितना अहितकर है। दूत ने जब बाहुबली का संदेश सम्राट् भरत को दिया तो वे असमंजस में पड़ गये, क्योंकि चक्ररत्न नगर में प्रवेश नहीं कर रहा था और जब तक चक्ररत्न नगर में प्रवेश नहीं करता है तब तक चक्रवर्तित्व के लिये जो इतना कठिन श्रम किया था, वह सब निष्फल हो जाता / दूसरी ओर लोकापवाद और भाई का प्रेम भी युद्ध न करने के लिये उत्प्रेरित कर रहा था। चक्रवर्तित्व के लिये मन मार कर भाई से युद्ध करने के लिये भरत प्रस्थित हुए। उन्होंने बहली देश की सीमा पर सेना का पड़ाव डाला। बाहुबली भी अपनी विराट् सेना के साथ रणक्षेत्र में पहुंच गये। कुछ समय तक दोनों सेनाओं में युद्ध होता रहा / युद्ध में जनसंहार होगा, यह सोचकर बाहुबली ने सम्राट् भरत के सामने द्वन्द्वयुद्ध का प्रस्ताव रखा / सम्राट भरत ने उस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया। दृष्टियुद्ध, वाकयुद्ध, मुष्टियुद्ध और दण्ड युद्ध के द्वारा दोनों का बल परीक्षण करने का निर्णय लिया गया। हुप्रा / इस युद्ध में दोनों ही बीर अनिमेष होकर एक दूसरे के सामने खड़े हो गये और अपलक नेत्रों से एक दूसरे को निहारते रहे। अन्त में संध्या के समय भरत के मुख पर सूर्य मा जाने से उनकी पलकें बन्द हो गई। प्रथम दृष्टियुद्ध में बाहुबली विजयी हुए। दुष्टियुद्ध के बाद वागयुद्ध प्रारंभ हुआ। दोनों ही वीरों ने पुनः पुनः सिंहनाद किया। भरत का स्वर धीरे-धीरे मन्द होता चला गया व बाहुबली का स्वर धीरे-धीरे उदात्त बनता चला गया / इस युद्ध में भी भरत बाहुबली से पराजित हो गये। दोनों युद्धों में पराजित होने से भरत खिन्न थे। उन्होंने मुष्टियुद्ध प्रारम्भ किया / भरत ने कुद्ध होकर बाहुबली के वक्षस्थल पर मुष्टिका प्रहार किया, जिससे बाहुबली कुछ क्षणों के लिये मूच्छित हो गए / जब उनकी मूछा दूर हुई तो बाहुबली ने भरत को उठाकर गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया / बाहुबली का मन अनुताप से भर गया कि कहीं भाई जमीन पर गिर गया तो मर जायेगा। उन्होंने गिरने से पूर्व ही भरत को भुजामों में पकड़ लिया और भरत के प्राणों की रक्षा की। भरत लज्जित थे। उन्होंने बाहुबली के सिर पर मुष्टिका-प्रहार किया पर बाहुबली पर कोई असर नहीं हुआ। जब बाहुबली ने मुष्टिका-प्रहार किया तो भरत मूच्छित होकर जमीन पर लुढ़क पड़े। मूच्र्छा दूर होने पर भरत ने दंड से बाहुबली के मस्तक पर प्रहार किया। दण्ड-प्रहार से बाहुबली को प्रांखें बन्द हो गई और वे घुटनों तक जमीन में धंस गये। बाहुबली पुनः शक्ति को बटोर कर बाहर निकले / भरत पर उन्होंने प्रहार किया तो भरत गले तक जमीन में धंस गये / सभी युद्धों में भरत पराजित हो गये थे। उनके मन में यह प्रश्न कौंधने लगा कि चक्रकर्ती सम्राट मैं हैं या बाहबली है ?" भरत इस संकल्प-विकल्प में उलझे हुए थे कि उसी समय यक्ष राजाओं ने भरत के हाथ में चक्ररत्न थमा दिया। मर्यादा को विस्मृत कर बाहुबली के शिरोच्छेदन करने हेतु भरत ने अपना अन्तिम शस्त्र बाहुबली पर चला दिया। सारे दर्शक देखते रह गये कि अब बाहुबली नहीं बच पायेंगे / बाहुबली का खून भी बोल उठा, वे उछल कर चक्र | चाहते थे पर चक्ररत्न बाहुबली की प्रदक्षिणा कर पुनः भरत के पास लौट मया / वह बाहुबली का बाल भी बांका नहीं कर सका। भरत अपने कृत्य पर लज्जित थे।५६ 217. (क) प्रावश्यकभाष्य, गाथा 33 (ख) आवश्यकचूणि 210 218, त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित 115722-723 219. त्रिषष्टि. 115746 [4] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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