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________________ 398 [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गुच्छों, गुल्मों-लता-कुंजों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त रहते हैं। कई ऐसे हैं, जो सदा समश्रेणिक रूप में-एक पंक्ति में स्थित हैं। कई ऐसे हैं, जो सदा युगल रूप में-दो-दो की जोड़ो के रूप में विद्यमान हैं। कई ऐसे हैं, जो पूष्पों एवं फलों के भार से नित्य विनमित-बहत झके हए हैं. प्रणमित-विशेष रूप से अभिनमित-नमे हुए हैं। कई ऐसे हैं, जो ये सभी विशेषताएँ लिये हैं / ) वे अपनो सुन्दर लुम्बियों तथा मजरियों के रूप में मानो शिरोभूषण-कलंगियाँ धारण किये रहते हैं। वे अपनी श्री-कान्ति द्वारा अत्यन्त शोभित होते हुए स्थित हैं / जम्बू सुदर्शना पर परम ऋद्धिशाली, पल्योपम-आयुष्ययुक्त अनाहत नामक देव निवास करता है। गौतम ! इसी कारण वह (द्वीप) जम्बूद्वीप कहा जाता है। उपसंहार : समापन 213. तए णं समणे भगवं महावीरे मिहिलाए गयरोए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं, बहूर्ण समणोणं, बहूणं सावयाणं, बहूर्ण सावियाणं, बहूणं देवाणं, बहूणं देवोणं मझगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ जम्बूदोवपण्णत्तो णामत्ति प्रज्जो ! अज्झयणे अठं च हेउं च पसिणं च कारणं च वागरणं च भुज्जो 2 उबदंसेइ ति बेमि / ॥जंबुद्दीवपण्णत्तो समत्ता // [213] सुधर्मा स्वामी ने अपने अन्तेवासी जम्बू को सम्बोधित कर कहा-~-आर्य जम्बू ! मिथिला नगरी के अन्तर्गत मणिभद्र चैत्य में बहुत-से श्रमणों, बहत-सी श्रमणियों, बहुत-से श्रावकों, बहुत-सो श्राविकाओं, बहुत-से देवों, बहुत-सी देवियों को परिषद् के बीच श्रमण भगवान् महावीर ने शस्त्रपरिज्ञादि को ज्यों श्रुतस्कन्धादि के अन्तर्गत जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति नामक स्वतन्त्र अध्ययन का पाख्यान किया-वाच्यमात्र-कथन पूर्वक वर्णन किया, भाषण किया-विशेष-वचन-कथन पूर्वक प्रतिपादन क्रिया व्यक्त पर्याय-वचन द्वारा निरूपण किया, प्ररूपण किया-उपपत्ति या युक्तिपूर्वक व्याख्यात किया। विस्मरणशील श्रोतवन्द पर अनुग्रह कर अर्थ-अभिप्राय, तात्पर्य, हेतु-निमित्त, प्रश्न-शिष्य द्वारा जिज्ञासित, पृष्ट अर्थ के प्रतिपादन, कारण तथा व्याकरण-अपृष्टोत्तर-नहीं पूछे गये विषय में उत्तर, स्पष्टीकरण द्वारा प्रस्तुत शास्त्र का बार बार उपदेश किया-विवेचन किया। // सप्तम वक्षस्कार समाप्त / / // जम्बूद्दीपप्रज्ञप्ति समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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