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________________ सप्तम वक्षस्कार] [385 ज्यों विमल, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, वज्रमय कुंभस्थल से युक्त, सुस्थित--सुन्दर संस्थानयुक्त, पीवरपरिपुष्ट, उत्तम, होरों की ज्यों देदीप्यमान, वृत्त-गोल सूड, उस पर उभरे हुए दीप्त, रक्त-कमल से प्रतीत होते बिन्दुओं से सुशोभित, उन्नत मुखयुक्त, तपनीय-स्वर्ण सदृश, विशाल, चंचल-सहज चपलतामय, इधर-उधर डोलते, निर्मल, उज्ज्वल कानों से युक्त, मधुवर्ण-शहद सदृश वर्णमय, भासमानदेदीप्यमान, स्निग्ध-चिकने, सुकोमल पलकयुक्त, निर्मल, त्रिवर्ण-लाल, पीले तथा सफेद रत्नों जैसे लोचनयुक्त, अभ्युद्गत–अति उन्नत, मल्लिका–चमेली के पुष्प की कली के समान धवल, सदृशसंस्थित- सम संस्थानमय, निर्वण-व्रणजित, घाव से रहित, दृढ़, संपूर्णत: स्फटिकमय, सुज जन्मजात दोषरहित, मूसलवत्, पर्यन्त भागों पर उज्ज्वल मणिरत्न-निष्पन्न रुचिर चित्रांकनमय स्वर्णनिर्मित कोशिकाओं में-खोलों में सन्निबेशित अग्रभागयुक्त दाँतों से सुशोभित, तपनीय स्वर्ण-सदृश, विशाल-बड़े-बड़े तिलक प्रादि पुष्पों से परिमण्डित, विविध मणिरत्न-सज्जित मूर्धायुक्त, गले में प्रस्थापित श्रेष्ठ भूषणों से विभूषित, कुंभस्थल द्विभाग-स्थित नीलमनिर्मित विचित्र दण्डान्वित, निर्मल वज्रमय, तीक्ष्ण, कान्त अंकुशयुक्त, तपनीय-स्वर्ण-निर्मित, सुबद्ध- सुन्दर रूप में बंधी कक्षा हृदयरज्जू-छाती पर, पेट पर बाँधी जाने वाली रस्सी से युक्त, दर्प से—गर्व से उद्धत, उत्कट बलयुक्त, निर्मल, सघन मण्डलयुक्त, हीरकमय अंकुश द्वारा दी जाती ताड़ना से उत्पन्न ललित-श्रुतिसुखद शब्दयुक्त, विविध मणियों एवं रत्नों से सज्जित, दोनों ओर विद्यमान छोटी छोटी घण्टियों से समायुक्त, रजतनिर्मित, तिरछी बँधी रस्सी से लटकते घण्टायुगल—दो घण्टाओं के मधुर स्वर से मनोहर प्रतीत होते, सुन्दर, समुचित प्रमाणोपेत, वर्तुलाकार, सुनिष्पन्न, उत्तम लक्षणमय प्रशस्त, रमणीय बालों से शोभित पंछ वाले, उपचित---मांसल, परिपूर्ण-पूर्ण अवयवमय, कच्छप की ज्यों उन्नत चरणों द्वारा लाघव पूर्वक-द्रतगति से कदम रखते, अंकरत्नमय नखों वाले, तपनीय-स्वर्णमय जिह्वा तथा तालुयुक्त, तपनीय-स्वर्ण-निर्मित रस्सी द्वारा विमान के साथ सुन्दर रूप में जुड़े हुए, यथेच्छ गमन करने वाले, उल्लास के साथ चलने वाले, मन की गति की ज्यों सत्वर गमनशील, मन को रमणीय लगने वाले, अत्यधिक तेज गतियुक्त, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ एवं पराक्रमयुक्त, उच्च, गम्भीर स्वर से गर्जना करते हुए, अपनी मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा आकाश को प्रापूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार गजरूपधारी देव विमान के दक्षिणी पार्श्व को परिवहन करते हैं। चन्द्र-विमान के पश्चिम में सफेद वर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त-जन-जन-प्रिय, सुन्दर प्रभायुक्त, चलचपल-इधर-उधर हिलते रहने के कारण अति चपल ककुद्-थूही से शोभित, धन-लोहमयी गदा की ज्यों निचित--ठोस, सुगठित, सुबद्ध-शिथिलतारहित, प्रशस्तलक्षणयुक्त, किञ्चित् झुके हुए चक्रीमत-कुटिल गमन, टेढो चाल, ललित-सविलास गति--सून्दर, शानदार चाल पुलित गति-आकाश को लांघ जाने जैसी उछाल पूर्ण चाल इत्यादि अत्यन्त चपल-स्वरापूर्ण, गर्वपूर्ण गति से शोभित, सन्नत-पार्श्वनीचे की ओर सम्यक् रूप में नत हुए--झुके हुए देह के पाव-भागों से युक्त, संगत-पार्श्व-देह-प्रमाण के अनुरूप पार्श्वभागयुक्त, सुजात-पार्श्व-सुनिष्पन्न-सहजतया सुगठित पार्श्वयुक्त, पीवर-परिपुष्ट, वर्तित-गोल, सुसंस्थित–सुन्दर आकारमय कमर वाले, अवलम्बप्रालम्ब-लटकते हुए लम्बे, उत्तम लक्षणमय, प्रमाणयुक्त-समुचित प्रमाणोपेत, रमणीय, चामर-पूछ के सघन, धवल केशों से शोभित, परस्पर समान खुरों से युक्त, सुन्दर पूछ युक्त, समलिखित समानरूप में उत्कीर्ण किये गये से-कोरे गये से, तीक्ष्ण अग्रभाग मय, संगत-यथोचित मानोपेत सींगों से युक्त, तनुसूक्ष्म-प्रत्यन्त सूक्ष्म, सुनिष्पन्न, स्निग्ध-चिकने, मुलायम, लोम-देह के बालों की छवि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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