________________ सप्तम वक्षस्कार] [375 गिम्हाणं भन्ते ! पढम मासं कति णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! तिणि णक्खत्ताणेति-उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता। उत्तराफगुणी चउद्दस राइंदिआई णेइ, हत्थो पण्णरस राइंदिप्राइं इ, चित्ता एगं राइंदिनं णेई। तया णं दुवालसंगुलपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरिघट्टइ। तस्स गं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाई तिण्णि पयाई पोरिसी भव। गिम्हाणं भन्ते ! दोच्चं मासं कति णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! तिणि णक्खत्ता णेति, तं जहा—चित्ता, साई, विसाहा। चित्ता चउद्दस राइंदिप्राइं गेइ, साई पाणरस राइंदिपाई णेइ, विसाहा एग राइंदिरं जेई / तया णं अलैंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरिट्टइ। तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई अलैंगुलाई पोरिसी भव। गिम्हाणं भन्ते ! तच्चं मासं कति णक्खत्ता णेति ? गोयमा ! चत्तारि पक्वत्ता णेति तं जहा-विसाहाऽणुराहा, जेट्ठा, मूलो। विसाहा चउद्दस राइंदिग्राइं णेह, अणुराहा अट्ट राइंदिप्राइं णेइ, जेट्ठा सत्त राइंदियाई इ, मूलो एक्क राइंदि। तया णं चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अणुपरिपट्टइ / तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि दो पयाई चत्तारि अ अंगुलाई पोरिसी भवइ / गिम्हाणं भन्ते ! चउत्थं मासं कति णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! ति णि णक्खत्ता ऐति, तं जहा-मूलो, पुवासाढा, उत्तरासाढा। मूलो चउद्दस राइविप्राइं इ, पुव्वासाढा पण्णरस राइंदिप्राइं इ, उत्तरासाढा एगं राइंदिनं इ, तया णं वट्टाए समचउरंससंठाणसंठिाए णग्गोहपरिमण्डलाए सकायमणुरंगिमाए छायाए सूरिए अणुपरिपट्टइ। तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाई दो पयाई पोरिसी भवइ / एतेसि णं पुग्यवाणियाणं पयाणं इमा संगहणी तं जहा जोगो देवयतारग्गगोत्तसंठाण-चन्दरविजोगो / कुलपुण्णिमअवमंसा गेला छाया य बोद्धध्वा // 1 // [165] भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के प्रथम-श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं१. उत्तराषाढा, 2. अभिजित्, 3. श्रवण तथा 4. धनिष्ठा / उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के 14 अहोरात्र~-दिनरात परिसमाप्त करता है, अभिजित् नक्षत्र 7 अहोरात्र परिसमाप्त करता है, श्रवण नक्षत्र 8 अहोरात्र परिसमाप्त करता है तथा धनिष्ठा नक्षत्र 1 अहोरात्र परिसमाप्त करता है / ( 14+7++1=30 दिनरात-१ मास ) उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण परिभ्रमण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org