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________________ सप्तम वक्षस्कार] - गौतम ! ऐसा ही होता है / जब पूर्णिमा श्रवण नक्षत्रयुक्त होती है तो उससे पूर्व अमावस्या मघा नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा मघा नक्षत्रयुक्त होती है तो उसके पश्चात् पानेवाली अमावस्या श्रवण नक्षत्रयुक्त होती है। भगवन् ! जब पूर्णिमा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्रयुक्त होती है, तब क्या तत्पश्चाद्भाविनी अमावस्या उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र युक्त होती है ? __ जब पूर्णिमा उत्तरफाल्गुनी नक्षत्रयुक्त होती है, तब क्या अमावस्या उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र युक्त होती है ? 'हाँ, गौतम ! ऐसा ही होता है। ___इस अभिलाप-कथन-पद्धति के अनुरूप पूर्णिमानों तथा अमावस्याओं की संगति निम्नांकित रूप में जाननी चाहिए जब पणिमा अश्विनी नक्षत्रयक्त होती है, तब पश्चादतिनी अमावस्या चित्रा नक्षत्रयक्त होती है / जब पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र युक्त होती है, तो अमावस्या अश्विनी नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या विशाखा नक्षत्र युक्त होती है। जब पूर्णिमा विशाखा नक्षत्रयुक्त होती है / तब अमावस्या कृत्तिका नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा मृगशिर नक्षत्र युक्त होती है, तब अमावस्या ज्येष्ठामूल नक्षत्रयुक्त होती है। जब पूर्णिमा ज्येष्ठामूल नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या मृगशिर नक्षत्रयुक्त होती है / जब पूर्णिमा पुष्य नक्षत्रयुक्त होती है, तब अमावस्या पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है / जब पूर्णिमा पूर्वाषाढा नक्षत्रयुक्त होती है, तो अमावस्या पुष्य नक्षत्रयुक्त होती है। मास-समापक नक्षत्र 165. वासाणं पढमं मासं कति णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! चत्तारि णक्खत्ता ऐति, तं जहा- उत्तरासाढा, अभिई, सवणो, धणिट्ठा। उत्तरासाठा चउद्दस अहोरते णेइ, अभिई सत्त अहोरत्ते णेई, सवणो अट्टाहोरत्ते णेइ, धणिट्ठा एग अहोरत्तं णेइ / तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरसीए छायाए सूरिए अणुपरिट्टइ / तस्स मासस्स चरिमदिवसे दो पदा चत्तारि अ अंगुला पोरिसी भवइ। वासाणं भन्ते ! वोच्चं मासं कह णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! चत्तारि--धणिट्ठा, सयभिसया, पुटवभद्दवया, उत्तराभद्दवया / पणिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते णेइ, सयभिसया सत्त अहोरते णेइ, पुवामद्दवया अट्ठ अहोरते मेड़, उत्तराभद्दवया एग। तंसि च णं मासंसि अटुंगुलपोरिसीए छायाए सरिए अणुपरियट्टइ / तस्स मासस्सः चरिमे दिवसे दो पया अट्ठ य अंगुला पोरिसी भवइ / वासापं भन्ते! तइ मासं कह णक्खत्ता ऐति ? गोयमा ! तिणि णक्खत्ता ऐति तं जहा-उत्तरभद्दवया, रेवई, अस्सिणी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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