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________________ सप्तम वक्षस्कार] [351 भगवन् ! वे आठ नक्षत्रमण्डल कितने चन्द्रमण्डलों में समवसृत-अन्तर्भूत होते हैं ? गौतम ! वे पहले, तीसरे, छठे, सातवें, आठवें, दसवें, ग्यारहवें तथा पन्द्रहवें चन्द्र-मण्डल मेंयों आठ चन्द्र-मण्डलों में समवसृत होते हैं। भगवन् ! चन्द्रमा एक मुहूर्त में मण्डल-परिधि का कितना भाग अतिक्रान्त करता है ? गौतम ! चन्द्रमा जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, उस उस मण्डल की परिधि का - भाग अतिक्रान्त करता है। भगवन् ! सूर्य प्रतिमुहूर्त मण्डल-परिधि का कितना भाग अतिक्रान्त करता है ? गौतम ! सूर्य जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, उस उस मण्डल की परिधि के 41 - भाग अतिक्रान्त करता है। भगवन् ! नक्षत्र प्रतिमुहूर्त मण्डल-परिधि का कितना भाग अतिक्रान्त करते हैं ? गौतम ! नक्षत्र जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करते हैं, उस उस मण्डल की परिधि का 85. भाग अतिक्रान्त करते हैं। सूर्यादि-उद्गम 183. जम्बद्दीवे गं भंते ! दीवे सरिआ उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति 1, पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडोणमागच्छंति 2, दाहिणपडोणमुग्गच्छ पडीणउदीणमागच्छंति 3, पडीणउदोणमुग्गच्छ उदोण-पाईणमागच्छंति 4 ? हंता गोयमा ! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे वऽस्थि प्रोसप्पिणी प्रवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! इच्चेसा जम्बुदीवपण्णत्ती सूरपण्णत्ती वत्थुसमासेणं सम्मता भवई / जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे चंदिमा उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति जहा सूरबत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव 'प्रवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो!' इच्चेसा नम्बुद्दीवपण्णत्ती वत्थुसमासेण समत्ता भवइ। [183] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य उदीचीन-प्राचीन-उत्तर-पूर्व-ईशान कोण में उदित होकर क्या प्राचीन-दक्षिण-पूर्व-दक्षिण-आग्नेय कोण में आते हैं. अस्त होते हैं, क्या प्राग्नेय कोण में उदित होकरदक्षिण-प्रतीचीन-दक्षिण-पश्चिम-नैऋत्य कोण में आते हैं, अस्त होते हैं, क्या नैऋत्य कोण में उदित होकर प्रतीचीन-उदीचीन पश्चिमोत्तर-वायव्य कोण में पाते हैं, अस्त होते हैं, क्या वायव्य कोण में उदित होकर उदीचीन-प्राचीन-उत्तरपूर्व-ईशान कोण में आते हैं, अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही होता है। भगवतीसूत्र के पंचम शतक के प्रथम उद्देशक में 'णेव अस्थि मोस प्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते' पर्यन्त जो वर्णन आया है, उसे इस सन्दर्भ में समझ लेना चाहिए। आयुष्मन् श्रमण गौतम ! जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग के अन्तर्गत प्रस्तुत सूर्य सम्बन्धी वर्णन यहाँ संक्षेप में समाप्त होता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा उदीचीन-प्राचीन-उत्तर-पूर्व-ईशान कोण में उदित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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