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________________ सप्तम वक्षस्कार] [349 .. सव्वबाहिरए णं भंते ! नवखत्तमण्डले केवइअं प्रायामविक्खम्भेणं केवइ परिक्खेवेणं पण्णते? गोयमा ! एगं जोमणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोग्रणसए आयामविक्खम्भेणं तिणि प्रजोत्रणसयसहस्साई अट्ठारस य सहस्साइंतिप्णि अपण्णरसुत्तरे जोप्रणसए परिक्खेवेणं / जया णं भन्ते ! णक्खत्ते सव्वन्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइ खेत्तं गच्छइ? गोयमा ! पंच जोअणसहस्साई दोणि य पाणठे जोअगसए अट्ठारस य भागसहस्से दोष्णि प्रतेवढे भागसए गच्छइ मण्डलं एक्कवीसाए भागसहस्सेहि गवाह अ सट्ठेहि सएहि छेत्ता। जया णं भन्ते ! णखत्ते सच्चबाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइ खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच जोअणसहस्साई तिणि अएगूणवीसे जोत्रणसए सोलस य भागसहस्सेहिं तिणि प्र पण्णठे भागसए गच्छइ, मण्डलं एगवीसाए भागसहस्सेहिं गवहि अ सङ्केहि सरहिं छेत्ता। एते गं भन्ते ! अट्ट णवखतमण्डला कतिहि चंदमण्डलेहि समोअरंति ? गोयमा ! अहिं चंदमण्डलेहि समोअरंति, तंजहा–पढमे चंदमण्डले, ततिए, छठे, सत्तमे, प्रढमे, दसमे, इक्कारसमे, पण्ण रसमे चंदमण्डले। एगमेगेणं भन्ते ! मुत्तेणं केवइबाई भागसयाई गच्छइ ? गोयमा! जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स 2 मण्डलपरिक्खेवरस सत्तरस अट्ठसठे भागसए गच्छइ, मण्डलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउइए असएहिं छत्ता इति / एगमेगेणं भन्ते ! मुहुत्तेणं सूरिए केवइयाई भागसयाइं गच्छइ ? गोयमा ! जं जं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तस्स 2 मण्डलपरिक्खेवस्स अट्ठारसतीसे भागसए गच्छइ, मण्डलं सयसहस्से हिं अट्ठाणउत्तीए असएहि छेत्ता। एगमेगेणं भन्ते ! मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवइप्राइं भागसयाई गच्छइ? गोयमा! जं जं मण्डलं उबसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स तस्स मण्डलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसए गच्छइ मण्डलं सयसहस्सेणं अट्ठाणउईए असएहि छेत्ता / [182] भगवन् ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! नक्षत्रमण्डल पाठ' बतलाये गये हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप में कियत्प्रमाण क्षेत्र का अवगाहन कर कितने नक्षत्रमण्डल हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप में 180 योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं। 1. नक्षत्र 28 हैं। प्रत्येक का एक एक मण्डल होने से नक्षत्रमण्डल भी 28 कहे जाने चाहिए, किन्तु यहाँ पाठ नक्षत्रमण्डल के रूप में कथन उनके सचरण के आधार पर है, जो उनके प्रतिनियत मण्डलों के माध्यम से पाठ ही मण्डलों में सन्निविष्ट होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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