________________ 326) जिम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अभिवुड्ढेमाणे चुलसीई 2 सीमाई जोप्रणाई पुरिसच्छायं णिव्वड्ढेमाणे 2 सन्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। ___ जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई तिणि अ पंचुत्तरे जोअणसए पण्णरस य सटिभाए जोपणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ / तया णं इहगयस्स मणुसस्स एगतीसाए जोश्रणसहस्सेहिं अट्ठहि अ एगत्तीसेहिं जोअणसएहिं तोसाए प्र सट्ठिभाएहि जोअणस्स सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ त्ति एस णं पढमे छम्मासे / एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे / से सूरिए दोच्चे छम्मासे प्रयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। ___ जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइअं खेत्तं गच्छइ ? गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई तिणि अ चउरुत्तरे जोग्रणसए सत्तावणं च सद्विभाए जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स एगत्तीसाए जोअणसहस्सेहि गवाह प्र सोलसुत्तहिं जोअणसएहिं इगुणालीसाए अ सद्विभाएहिं जोअणस्स सट्ठिभागं च एगसद्विधा छेत्ता सद्धिए चुण्णिआभागेहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्यमागच्छइ ति / से पविसमाणे सरिए वोच्चंसि अहोरतंसि बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। ___ जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइ खेत्तं गच्छइ ? __ गोयमा ! पंच पंच जोप्रणसहस्साई तिणि अचउरुत्तरे जोअणसए इगुणालीसं च सद्विभाए जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ / तया णं इहगयस्स मणुयस्स एगाहिएहिं बत्तीसाए जोमणसहस्सेहि एगूणपण्णाए अ सद्विभाएहि जोश्रणस्स सद्विभागं च एगसद्विधा छत्ता तेवीसाए चुण्णिाभारहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छह ति / एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सरिए तयाणंतरानो मंडलानो तयाणंतरं मंडलं संकममाणे 2 अट्ठारस 2 सद्विभाए जोअणस्स एगमेगे मंडले मुहत्तगई निवेड्डमाणे 2 सातिरेगाई पंचासीति 2 जोषणाई पुरिसच्छायं अभिवढेमाणे 2 सम्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ / एस णं दोच्चे छम्मासे / एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एस गं प्राइच्चे संवच्छरे / एस णं प्राइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते। [166] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर-सबसे भीतर के मण्डल का उपसंक्रमण कर चाल चलता है--गति करता है, तो वह एक-एक मुहर्त में कितने क्षेत्र को पार करता है—गमन करता है ? गौतम ! वह एक-एक मुहूर्त में 525130 योजन को पार करता है। उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्र स्थित मनुष्यों को 4726330 योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। वहां से निकलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org