________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र परिणत होते हैं। कई वातूल की ज्यों चक्कर लगाते हैं। कई अत्यन्त प्रमोदपूर्वक कहकहाहट करते हैं / कई 'दुहु-दुहु' करते हैं-उल्लासवश वैसी ध्वनि करते हैं / कई लटकते होठ, मुंह बाये, आँखे फाड़ेऐसे विकृत--भयानक भूत-प्रेतादि जैसे रूप विकुक्ति कर बेतहाशा नाचते हैं। कई चारों ओर कभी धीरे-धीरे, कभी जोर-जोर से दौड़ लगाते हैं / जैसा विजयदेव का वर्णन है, वैसा ही यहाँ कथन करना चाहिए-समझना चाहिए / अभिषेकोपक्रम 155. तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया महया अभिसेएणं अभिसिंचइ 2 त्ता करयलपरिग्गहिअं जाव' मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ 2 ता ताहि इटाहि जाव' जयजयसई पउंजति, पउंजित्ता जाव: पम्हलसुकुमालाए सुरभीए, गन्धकासाईए गायाई लूहेइ 2 ता एवं (लहिता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपइ 2 ता नासानीसासवायवोझ, चक्खुहरं, वण्णफरिसजुत्तं, हयलालापेलवाइरेगधवलं कणगखचिअंतकम्मं देवदूसजुअलं निसावेइ 2 ता) कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसिअं करेइ 2 त्ता (सुमिणदामं पिणद्धावेइ) पट्टविहिं उवदंसेइ 2 त्ता अच्छेहि, सण्हेहि, रययामरहिं अच्छरसातण्डुलेहि भगवओ सामिस्स पुरो अट्ठमंगलगे आलिहइ, तं जहा दप्पण 1, भद्दासणं 2, बद्धमाण 3, वरकलस 4, मच्छ 5, सिरिवच्छा 6 / सोत्थिय 7, गन्दाबत्ता 8, लिहिमा अट्ठमंगलगा // 1 // लिहिऊण करेइ उवयारं, कि ते ? पाडल-मल्लिम-चंपगड-सोग-पुन्नाग-चूअमंजरि-णवमालिनबउल-तिलय-कणवीर कुद-कुज्जग-कोरंट-पत्त - दमणग-वरसुरभि-गन्धगन्धिप्रस्स, कयग्गहगहिअकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्कस्स, दसद्धवण्णस्स, कुसुमणिपरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकरं करेत्ता चन्दप्पभरयणवइरवेरुलिअविमलदण्डं, कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं, कालागुरुपवरकुदुरुक्कतुरुक्कधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमट्टि विणिम्मुअंतं, वेरुलिअमयं कडुच्छुओं पग्गहित्तु पयएणं धूवं दाऊण जिणरिदस्स सत्तट्ठ पयाई प्रोसरित्ता दसंगुलिअं अंजलि करिन मत्थयंमि पयो अट्ठसयविसुद्धगन्धजुत्तेहि, महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहि, अत्थजुत्तेहि संथुणइ 2 ता वामं जाणु अंचेइ 2 ता (दाहिणं जाणु धरणिप्रलंसि निवाडेइ) करयलपरिग्गहिनं मत्थए अंजलि कट्ट एवं वयासी–णमोऽत्थु ते सिद्ध-बुद्ध-णोरय-समण-सामाहिन-समत्त-समजोगि-सल्लगत्तण-णिब्भयणोरागदोस-णिम्मम-णिस्संग-णीसल्ल-माणमूरण-गुणरयण-सीलसागर-मणंत-मप्पमेयभविअधम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी, णमोऽत्थु ते अरहोत्ति कटु एवं वन्दइ णमंसइ 2 ता गच्चासण्णे णाइद्रे सुस्सूसमाणे 1. देखें सूत्र संख्या 44 2. देखें सूत्र संख्या 68 3. देखें सूत्र संख्या 68 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org