________________ पञ्चम वक्षस्कार अधोलोकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव [145] जया णं एक्कमेक्के चक्कवट्टि विजए भगवन्तो तित्थयरा समुप्पज्जन्ति, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अढ दिसाकुमारीप्रो महत्तरियामो सएहि 2 कू.हि, सरहिं 2 भवणेहि, सहि 2 पासायवडेंसएहि, पत्तेअं 2 चउहि सामाणिन-साहस्सोहि, चहि महत्तरिश्राहिं सपरिवाराहि सहि अणिएहि, सहि अणिमाहिवईहि, सोलसहिं पायरक्खदेवसाहस्सीहि, अण्णेहि अ बहूहिं भवणवइ-वाणमन्तरेहि देवेहि देवीहि अ सद्धि संपरिचडाप्रो महया हयणट्टगीयवाइस(तंतोतलतालतुडियघणमुअंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाई) भोगभोगाई भुजमाणोश्रो विहरंति, तं जहा भोगंकरा 1 भोगवई 2, सुभोगा 3 भोगमालिनी 4 / तोयधारा 5 विचित्ता य 6, पुप्फमाला 7 अणिदिना 8 // 1 // तए णं तासि अहेलोगवत्थव्वाण अण्हं दिसाकुमारीणं मयहरियाणं पत्तेअं पत्तेअं प्रासणाई चलंति / तए णं तानो अहेलोगवत्थव्वानो अटु दिसाकुमारीयो महत्तरियानो पत्तेअं 2 पासणाई चलिग्राइं पासन्ति 2 ता प्रोहि पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं प्रोहिणा प्राभोएंति 2 त्ता अण्णमण्णं सद्दाविति 2 ता एवं वयासो-उप्पण्णे खलु भो ! जम्बुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे तं जोयमे तोअपच्चुप्पण्णमणागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्टण्हं दिसाकुमारीमहत्तरिमाणं भगवनो तित्थगरस्स जम्मण-महिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवो जम्मण-महिमं करेमोत्ति कटु एवं वयंति 2 ता पत्तेअं पत्तेअं प्राभिप्रोगिए देवे सहावेति 2 ता एवं क्यासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अणेग-खम्भ-सय-सण्णिविट्ठ लीलादिन० एवं विमाण-वण्णश्रो भाणिश्रवो जाव जोप्रण-वित्थिण्णे दिव्वे जाणविमाणे विउवित्ता एप्रमाणत्तियं पच्चपिणहत्ति।' तए णं ते प्राभियोगा देवा प्रणेगखम्भसय जाव' पच्चप्पिणंति, तए णं तानो आहेलोगवत्थव्यासो अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियानो हद्वतुट्ठ० पत्तयं पत्तेयं चहि सामाणिप्रसाहस्सोहि चहि महत्तरिाहि (सपरिवाराहि सतहि अणिएहि सहि अणिमाहिवईहिं सोलसएहि आयरक्ख-देवसाहस्सीहिं) अणेहि बहूहि देवेहि देवी हि प्र सद्धि संपरिवुडामो ते दिवे जाणविमाणे दुरुहंति, दुरुहिता सस्विड्डोए सव्वजुईए घणमुइंग-पणवपवाइअरवेणं ताए उक्किट्ठाए जाव देवगईए जेणेव भगवनो तित्थगरस्स जम्मणणगरे जेणेव तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छन्ति 2 त्ता भगवनो 1. देखें सूत्र संख्या 68 2. देखें सूत्र संख्या 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org