________________ चतुर्य वक्षस्कार [259 वह वन काले, नीले आदि पत्तों से-वैसे वृक्षों से, लताओं से आपूर्ण है। उनकी कृष्ण, नील आभा द्योतित है। वहाँ देव-देवियां पाश्रय लेते हैं। कूटों के अतिरिक्त और सारा वर्णन नन्दन वन के सदृश है / उसमें आगे शकेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के उत्तम प्रासाद हैं / पण्डक वन 135. कहि गं भन्ते ! मन्दरपव्वए पंडगवणे णामं वणे पण्णते? गोयमा ! सोमणसवणस्स बहुसमरमणिज्जानो भूमिभागाओ छत्तीसं जोअणसहस्साई उद्ध उप्पइत्ता एत्थ णं मन्दरे पव्वए सिहरतले पंडगवणे णामं वणे पण्णत्ते / चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवाल विक्खम्भेणं, वट्टे, वलयाकारसंठाणसंठिए, जे गं मंदरचूलिअंसवनो समन्ता संपरिक्खिताणं चिट्ठइ / तिम्णि जोअणसहस्साई एगं च बावळं जोअणसयं किचिविसेसाहिलं परिक्खेवेणं / सेणं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं जाव' किण्हे देवा प्रासयन्ति / / __ पंडगवणस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं मंदरचलिआ णामं चूलिया पण्णत्ता / चत्तालीसं जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, मूले बारस जोश्रणाई विक्खम्भेणं, मज्झे अट्ट जोषणाई विक्खम्भेणं, उपि चत्तारि जोषणाई विक्खम्भेणं / मूले साइरेगाई सत्तत्तीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाई पणवीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, अपि साइरेगाइं बारस जोषणाई परिक्खेवेणं / मूले वित्थिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पि तणुआ, गोपुच्छसंठाणसंठिया, सब्ववेरुलिआमई, अच्छा / साणं एगाए पउमवरवेइआए (एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समन्ता) संपरिक्खित्ता इति / उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे जाव' सिद्धाययणं बहुमज्झदेसभाए कोसं पायामेणं, प्रद्धकोसं विक्खम्भेणं, देसूणगं कोसं उद्धं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसय (-सण्णिविट्ठ), तस्स णं सिद्धाययणस्स तिदिसि तओ दारा पण्णत्ता। तेणं दारा अट्ठ जोअणाई उद्ध उच्चत्तेणं, चत्तारि जोअणाई विक्खम्भेणं, तावइयं चेव पवेसेणं / सेना बरकणगथूभिआगा जाव वणमालामो भूमिभागो अ भाणिअन्वो। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगा मणिपेढिना पग्णत्ता / अट्ठजोनणाई आयामविक्खम्भेणं, चत्तारि जोअणाई बाहल्लेणं, सम्वरयणामई अच्छा। तोसे णं मणिपेढिाए उरि देवच्छन्दए, अट्ठजोअणाई आयामविक्खम्भेणं, साइरेगाइं अटुजोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णो देवच्छन्दगस्स जाव) धूवकडुच्छ गा। मन्दरचूलिआए णं पुरस्थिमेणं पंडगवणं पण्णासं जोअणाई ओगाहित्ता एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते। एवं जच्चेव सोमणसे पुत्ववण्णिओ गमो भवणाणं पुक्खरिणीणं पासायवडेंसगाण य सो चेव णेअव्वो जाव सक्कोसाणवडेंसगा तेणं चेव परिमाणेणं / [135] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर पण्डक वन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? 1. देखें सूत्र संख्या 6 2. देखें सूत्र संख्या 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org