________________ बसुर्य बबरमार] [217 यमिका राजधानियों में से प्रत्येक में बहुत समतल सुन्दर भूमिभाग हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् है / उन बहुत समतल, रमणीय भूमिभागों के बीचों-बीच दो प्रासाद-पीठिकाएँ हैं। वे 1200 योजन लम्बी-चौड़ी हैं। उनकी परिधि 3795 योजन है। वे प्राधा कोश मोटी हैं। बे सम्पूर्णतः उत्तम जम्बूनद जातीय स्वर्णमय हैं, उज्ज्वल हैं। उनमें से प्रत्येक एक-एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक-एक वन-खण्ड द्वारा परिवेष्टित है। वन-खण्ड, त्रिसोपानक, चारों दिशाओं में चार तोरण, भूमिभाग आदि से सम्बद्ध वर्णन पूर्ववत् है / उसके बीचों-बीच एक उत्तम प्रासाद है / वह 623 योजन ऊँचा है / वह 31 योजन 1 कोश लम्बा-चौड़ा है। उसके ऊपर के हिस्से, भूमिभाग- नीचे के हिस्से, सम्बद्ध सामग्री सहित सिंहासन, प्रासाद-पंक्तियाँ-मुख्य प्रासाद को चारों ओर से परिवेष्टित करनेवाली महलों की कतारें इत्यादि अन्यत्र वर्णित हैं, ज्ञातव्य हैं। प्रासाद-पंक्तियों में से प्रथम पंक्ति के प्रासाद 31 योजन 1 कोश ऊँचे हैं। वे कुछ अधिक 153 योजन लम्बे चौड़े हैं। ___ द्वितीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक 156 योजन ऊँचे हैं। वे कुछ अधिक 76 योजन लम्बे-चौड़े हैं। तृतीय पंक्ति के प्रासाद कुछ अधिक 72 योजन ऊँचे हैं, कुछ अधिक 32 यौजन लम्बे-चौड़े हैं / सम्बद्ध सामग्री युक्त सिंहासनपर्यन्त समस्त वर्णन पूर्ववत् है / मूल प्रासाद के उत्तर-पूर्व दिशाभाग में-ईशान कोण में यमक देवों की सुधर्मा सभाएँ बतलाई गई हैं। वे सभाएँ 123 योजन लम्बी, 6 योजन 1 कोश चौड़ी तथा 6 योजन ऊँची हैं। सैकड़ों खंभों पर अवस्थित हैं—टिकी हैं। उन सुधर्मा सभाओं की तीन दिशाओं में तीन द्वार बतलाये गये हैं / वे द्वार दो योजन ऊँचे हैं, एक योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश-मागों का प्रमाण-विस्तार भी उतना ही है / वनमाला पर्यन्त प्रागे का सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। उन द्वारों में से प्रत्येक के आगे मुख-मण्डप-द्वाराग्नवर्ती मण्डप बने हैं। वे साढ़े बारह योजन लम्बे, छह योजन एक कोश चौड़े तथा कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं / द्वार तथा भूमिभाग पर्यन्त अन्य समस्त वर्णन पूर्वानुरूप है / मुख-मण्डपों के आगे अवस्थित प्रेक्षागृहों-नाटयशालाओं का प्रमाण मुखमण्डपों के सदृश है। भूमिभाग, मणिपीठिका आदि पूर्व वर्णित हैं। मुख-मण्डपों में अवस्थित मणिपीठिकाएँ 1 योजन लम्बी-चौड़ी तथा प्राधा योजन मोटी हैं। वे सर्वस्था मणिमय हैं / वहाँ विद्यमान सिंहासनों का वर्णन पूर्ववत् है। प्रेक्षागह-मण्डपों के आगे जो मणिपीठिकाएँ हैं, वे दो योजन लम्बी-चौड़ी तथा एक योजन मोटी हैं। वे सम्पूर्णतः मणिमय हैं। उनमें से प्रत्येक पर तीन तीन स्तूप-स्मृति-स्तंभ बने हैं। वे स्तूप दो योजन ऊँचे हैं, दो योजन लम्बे-चौड़े हैं वे शंख की ज्यों श्वेत हैं। यहाँ आठ मांगलिक पदार्थों तक का वर्णन पूर्वानुरूप है। उन स्तूपों की चारों दिशाओं में चार मणिपीठिकाएँ हैं। वे मणिपीठिकाएँ एक योजन लम्बी-चौड़ी तथा प्राधा योजन मोटी हैं। वहाँ स्थित जिन-प्रतिमाओं का वर्णन पूर्वानुरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org