________________ 208] जिम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र _ [102] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह नामक क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह नामक क्षेत्र बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है, पलंग के आकार के समान संस्थित है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। (अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है तथा) पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है / उसकी चौड़ाई 33684 3 योजन है। __उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम 33767 प योजन लम्बी है। उसके बीचों-बीच उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। अपने पूर्वी किनारे से वह पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है (तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है)। वह एक लाख योजन लम्बी है। उसका धनुपृष्ठ उत्तर-दक्षिण दोनों ओर परिधि की दष्टि से कुछ अधिक 158113 योजन है। महाविदेह क्षेत्र के चार भाग बतलाये गये हैं—१. पूर्व विदेह, 2. पश्चिम विदेह, 3. देवकुरु तथा 4. उत्तरकुरु। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है। वह नानाविध कृत्रिम-व्यक्तिविशेष-विरचित एवं अकृत्रिम--स्वाभाविक पंचरंगे रत्तों से, तृणों से सुशोभित है। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यों का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! वहाँ के मनुष्य छह प्रकार के संहनन', छह प्रकार के संस्थान वाले होते हैं / वे पाँच सौ धनुष ऊँचे होते हैं। उनका आयुष्य कम से कम अन्तर्मुहूर्त तथा अधिक से अधिक एक पूर्व कोटि का होता है। अपना आयुष्य पूर्ण कर उनमें से कतिपय नरकगामी होते हैं, (कतिपय तिर्यक्योनि में जन्म लेते हैं, कतिपय मनुष्ययोनि में जन्म लेते हैं, कतिपय देव रूप में उत्पन्न होते हैं,) कतिपय सिद्ध, (बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त) होते हैं, समग्र दु:खों का अन्त करते हैं / भगवन् ! वह महाविदेह क्षेत्र क्यों कहा जाता है ? गौतम ! भरतक्षेत्र, ऐरवतक्षेत्र, हैमवतक्षेत्र, हैरण्यवतक्षेत्र, हरिवर्षक्षेत्र तथा रम्यकक्षेत्र की अपेक्षा महाविदेहक्षेत्र लम्बाई, चौड़ाई, आकार एवं परिधि में विस्तीर्णतर–अति विस्तीर्ण, विपुलतर-अति विपुल, महत्तर-अति विशाल तथा सुप्रमाणतर-अति वृहत् प्रमाणयुक्त है। महाविदेह-अति महान्-विशाल देहयुक्त मनुष्य उसमें निवास करते हैं। परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्य वाला महाविदेह नामक देव उसमें निवास करता है। गौतम! इस कारण वह महाविदेह क्षेत्र कहा जाता है / --- - - - - 1. 1. वचऋषभनाराच, 2. ऋषभनाराच, 3. नाराच, 4. अर्धनाराच, 5. कीलक तथा 6. सेवातं / / 2. 1. समचतुरस्र, 2. म्यग्रोधपरिमंडल, 3. स्वाति, 4. वामन, 5. कुब्ज तथा 6. हुंड / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org