________________ 204] जम्मूद्वीपप्रज्ञप्तिसून निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर एक बहुत समतल तथा सुन्दर भूमिभाग है, जहां देव-देवियाँ निवास करते हैं। उस बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग के ठीक बीच में एक तिगिंछद्रह (पुष्परजोद्रह) नामक द्रह है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा है, उत्तर-दक्षिण चौड़ा है / वह 4000 योजन लम्बा 2000 योजन चौड़ा तथा 10 योजन जमीन में गहरा है। वह स्वच्छ, स्निग्ध-चिकना तथा रजतमय तटयुक्त है। उस तिगिछद्रह के चारों ओर तीन-तीन सीढ़ियां बनी हैं। लम्बाई, चौड़ाई के अतिरिक्त उस (तिगिछद्रह) का सारा वर्णन पद्मद्रह के समान है। परम ऋद्धिशालिनी, एक पल्योपम के आयुष्य वाली धृति नामक देवी वहाँ निवास करती है। उसमें विद्यमान कमल आदि के वर्ण, प्रभा अादि तिगिच्छ-परिमल-पुष्परज के सदृश हैं / अतएव वह तिगिछद्रह कहलाता है। 101. तस्स णं तिगिछिद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं हरिमहाणई पवढा समाणी सत्त जोप्रणसहस्साई चत्तारि अ एकवीसे जोअणसए एगं च एगणवीसइभागं जोअणस्स दाहिणाभिमुही पध्वएणं गंता महया घडमुहपवित्तिएणं (मुत्तावलिहारसंठिएणं) साइरेगचउजोअणसइएणं पवाएणं पपडइ / एवं जा चेव हरिकन्ताए वत्तम्वया सा चेव हरीएवि णेप्रध्वा / जिभिआए, कुडस्स, दोवस्स, भवणस्स तं चेव पमाणं अट्ठोऽवि भाणिअन्वो जाव अहे जगई दालइत्ता छप्पण्णाए सलिला. सहस्सेहि समग्गा पुरस्थिमं लवणसमुई समप्पेइ / तं चेव पवहे अमुहमूले अपमाणं उन्वेहो अजो हरिकन्ताए जाव वणसंडसंपरिक्खित्ता। तस्स णं तिगिछिद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सोनोआ महाणई पवढा समाणी सत्त जोश्रणसहस्साई चसारि अ एगवीसे जोअणसए एगं च एगूणवीसइभागं जोअणस्स उत्तराभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवित्तिएणं जाव' साइरेगचउजोअणसइएणं पवाएणं पवडइ / सीमोना णं महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिम्भिमा पण्णत्ता। चत्तारि जोप्रणाई प्रायामेणं, पण्णासं जोअणाई विक्खंभेणं, जोअणं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्ठसंठाणसंठिया, सव्ववइरामई अच्छा। सीओमा णं महाणई जहि पवडइ एस्थ णं महं एगे सोप्रोअप्पवायकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते / चत्तारि असीए जोअणसए आयामविक्खंभेणं, पण्णरसअट्ठारे जोअणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं, अच्छे एवं कुडवत्तम्वया नव्या जाव तोरणा। तस्स णं सीओअप्पवायकुण्डस्स बहुमज्झदेसभाए एस्थ णं महं एगे सीओअदीवे णामं दीये पण्णत्ते / चउटुिं जोअणाई आयामविक्खंभेणं, दोणि विउत्तरे जोमणसए परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंतानो, सव्ववइरामए, अच्छे / सेसं तमेव वेइयावणसंडभूमिभागभवणसयणिज्जअट्ठो भाणिअव्वो। तस्स णं सीओअप्पवायकुण्डस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं सीओग्रा महाणई पवढा समाणी देवकुरु एज्जेमाणा 2 चित्तविचित्तकूडे, पवए, निसढदेवकुरुसूरसुलसविज्जुप्पभदहे अ दुहा विभयमाणी 2 चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी 2 भद्दसालवणं एज्जेमाणी 2 मंदरं पव्वयं दोहिं जोअहिं 1. देखें सूत्र संख्या 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org