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________________ 158] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र च णं बहवे राईसरतलवर जाव' सत्यवाहप्पभिइनो पुरओ अहाणुव्वोइ संपट्टिया। तयणंतरं च णं बहवे असिग्गाहा लटिग्गाहा कुतग्गाहा चावगाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा फलगग्गाहा परसुग्गाहा पोत्थयग्गाहा वीणग्गाहा कूअग्गाहा हडप्फग्गाहा दीविगाहा सहि सहि रूवेहि, एवं वेसेहि चिहिं निमोहि सहि 2 वत्थेहि पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थिा , तयणंतर च णं बहवे दंडिणो मुडियो सिहंडिणो जडिवो पिच्छिगो हासकारगा खेडुकारगा दवकारगा चाडकारगा कदंपिआ कुक्कुइआ मोहरिया गायंता य दोवंता य (वायंता) नच्चता य हसंता य रमंता य कोलंता य सासेंता य सावेता य जाता य राता य सो ता य सोभावेंता य पालोअंता य जयजयसदं च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुठवीए संपट्ठिया, एवं उववाइअगमेणं जाव तस्स रण्णो पुरनो महासा आसधरा उभयो पासिं गागा णागधरा पिटुओ रहा रहसंगेल्लो अहाणुपुन्वीए संपट्टिआ इति / ___ तए णं से भरहाहिवे गरिदे हारोत्थयए सुकयरइअवच्छे जाव' अमरवइसण्णिभाए इद्धोए पहिअकित्ती चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुप्रायमग्गे (महयाउक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं) समुद्दरवभूअंपिव करेमाणे 2 सव्विद्धोए सव्वजुईए जाव' णिग्घोसणाइयरवेणं गामागरणगरखेडकब्बडमडंब- (दोणमुह-पट्टणासम-संवाह-सहस्समंडिआहि) जोप्रणंतरित्राहि वसहीहि वसमाणे 2 जेणेव विगोया रायहाणो तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छिता विणोआए रायहाणोए अदूरसामंते दुवालसजोअणायामं णवजोयणविस्थिणं (वरणगरसरिच्छं विजय-) खंधावारणिवेसं करइ, 2 त्ता वद्धइरयणं सद्दावेइ 2 त्ता जाव पोसहसालं अणुपविसइ, 2 ता विणीआए रायहाणोए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ 2 ता (पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णो ववगयमालावण्णगविलेवणे णिक्खित्तसत्थमुसले दम्भसंथारोवगए) अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे 2 विहरइ। तए णं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालारो पडिणिक्खमइ 2 ता कोडुबिअपुरिसे सद्दावेइ 2 ता तहेव जाव' अंजगिरिकूडसण्णिभं गयवई परवई दूरूढे / तं चेव सव्वं जहा हेट्ठा णरि णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पविसंति सेसो सो चेव गमो जाव णिग्घोसणाइएणं विणोपाए रायहाणोए मज्झमझेणं जेणेव सए गिहे जेणेव भवणवरडिसगपडिदुवारे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तस्स भरहस्स रणोविणो रायहाणि मज्झमझेणं अपविसमाणस्स अप्पेगइया देवा विगो रायहाणि सम्भंतरबाहिरिअं आसिअसम्मज्जिवलितं करेंति अप्पेगइआ मंचाइमंचकलिनं करेंति, एवं सेसेसुवि पएसु, अप्पेगइआ णाणाविहरागवसणुस्सियधयपडागामंडितभूमिअं अप्पेगइआ लाउल्लोइअमहिअं करेंति, अप्पेगइआ (कालागुरु-पवरकुदुरुक्क-तुरुक्क-धूवमधमघंत-गंधुधुपाभिरामं, सुगंधवरगंधियं) गंधवट्टिभूकं करेंति, अप्पेगइमा हिरण्णवासं वासिति 1. देखें सूत्र संख्या 44 2. देखें सूत्र 54 3. देखें सूत्र 52 4. देखें सूत्र संख्या 50 5. देखें सूत्र-संख्या 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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