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________________ सम्प्रदायवाद से परे एक निराले व्यक्तित्व के धनी थे। इसीलिए समग्र सन्त एवं श्रावकसमाज आपको एक हदधर्मी श्रावक के रूप में जानता व आदर देता था। आप जैन शास्त्रों एवं तत्त्वों/सिद्धांतों के ज्ञाता थे। आप सन्त सतियों का चातुर्मास कराने में सदैव अग्रणी रहते थे और उनकी सेवा का लाभ बराबर लेते रहते थे। इस तरह धार्मिक क्षेत्र में आपका अपूर्व योगदान रहा। इसी तरह नेत्रहीन, अपंग, रोगग्रस्त, क्षुधापीड़ित, आर्थिक स्थिति से कमजोर बन्धुओं को समय-समय पर जाति-पांति के भेदभाव से रहित होकर अर्थ सहयोग प्रदान किया। इस प्रकार शिक्षणक्षेत्र में, चिकित्साक्षेत्र में, जीवदया के क्षेत्र में, धार्मिकक्षेत्र में एवं मानव-सहायता प्रादि हर सेवा के कार्य में तन-मन-धन से आपने यथासम्भव सहयोग दिया। ऐसे महान् समाजसेवी, मानवता के प्रतीक को खोकर भारत का सम्पूर्ण मानवसमाज दुःख की अनुभूति कर रहा है। प्राय चिरस्मरणीय बनें, जन-जन आपके आदर्श जीवन से प्रेरणा प्राप्त करे, आपकी आत्मा चिरशांति को प्राप्त करे; हम यही कामना करते हैं / * --मन्त्री * श्रीमान् भँवरलालजी सा, गोठी, मद्रास के सौजन्य से। [16] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003486
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages480
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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