________________ सम्पादकीय ज्योतिषगणराजप्रज्ञप्ति अर्थात् चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति के सूत्रपाठ पूर्व प्रकाशित सूर्यप्रज्ञप्ति के मूल सूत्रों से प्रस्तुत सूर्यप्रज्ञप्ति के मूल सूत्र यदि प्रक्षरश: मिलाना चाहेंगे तो नहीं मिलेंगे। क्योंकि इस संस्करण के सूत्रों को कई पूरक वाक्यों से पूरित किया है, फिर भी सूत्रपाठों की प्रामाणिकता यथावत् है। आगमों के विशेषज्ञ ही सूत्रपाठों की व्यवस्था के औचित्य को समझ सकेंगे। मामान्य अन्तर के अतिरिक्त चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति सर्वथा समान हैं, इसलिए एक के परिचय से दोनों का परिचय स्वतः हो जाता है / उपांगद्वय-परिचय संकलनकर्ता द्वारा निर्धारित नाम--ज्योतिषगणराजप्रज्ञप्ति है। प्रारम्भ में संयुक्त प्रचलित नाम चन्द्र-सूर्य प्रज्ञप्ति रहा होगा। बाद में उपांगद्वय के रूप में विभाजित नाम-चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति हो गये हैं, जो अभी प्रचलित हैं। प्रत्येक प्रज्ञप्ति में बीस प्राभृत हैं और प्रत्येक प्रज्ञप्ति में 108 सूत्र हैं / तृतीय प्राभृत से नवम प्राभृत पर्यन्त अर्थात् सात प्राभृतों में और ग्यारहवें प्राभृत से बीसवें प्रभृत पर्यन्त अर्थात् दस प्राभृतों में "प्राभृत-प्राभूत" नहीं हैं। केवल प्रथम, द्वितीय और दसवें प्राभृत में "प्राभूत-प्राभृत' हैं। संयुक्त संख्या के अनुसार सतरह प्राभृतों में प्राभृत-प्राभूत नहीं हैं। केवल तीन प्राभूतों में प्राभृत-प्राभृत हैं उपलब्ध चन्द्र-सूर्य प्रज्ञप्ति का विषयानुक्रम वर्गीकृत नहीं है। यदि इनके विकीर्ण विषयों का वर्गीकरण किया जाए तो जिज्ञासु जगत अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकता है। वर्गीकृत विषयानुक्रम चन्द्रप्रज्ञप्ति के विषयानक्रम की रूपरेखा१. चन्द्र का विस्तृत स्वरूप 3. चन्द्र का ग्रहों से संयोग 5. चन्द्र का ताराओं से संयोम / 2. चन्द्र का सूर्य से संयोग 4. चन्द्र का नक्षत्रों से संयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org