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220. [Prajñāpanā Sūtra [235-6 Pr.] Bhagavan! Of these sufficient and insufficient Vanaspatikāyikas, which are fewer, many, equal, or superior in number? [235-6 U.] Gautama! The insufficient Vanaspatikāyikas are the fewest, and the sufficient Vanaspatikāyikas are countless times more numerous. [7] [235-7 Pr.] Bhagavan! Of these sufficient and insufficient Trasakāyikas, which are fewer, many, equal, or superior in number? [235-7 U.] Gautama! The sufficient Trasakāyikas are the fewest, and the insufficient Trasakāyikas are countless times more numerous. 236. [236 Pr.] Bhagavan! Of these Sakāyika, Pṛthvīkāyika, Apkāyika, Tejasakāyika, Vāyukāyika, Vanaspatikāyika, and Trasakāyika, which are sufficient and insufficient, which are fewer, many, equal, or superior in number? [236 U.] Gautama! 1. The fewest are the sufficient Trasakāyikas, 2. (compared to them) the insufficient Sakāyikas are countless times more numerous, 3. (compared to them) the insufficient Tejasakāyikas are countless times more numerous, 4. (compared to them) the insufficient Pṛthvīkāyikas are superior in number, 5. (compared to them) the insufficient Apkāyikas are superior in number, 6. (compared to them) the insufficient Vāyukāyikas are superior in number, 7. (compared to them) the sufficient Tejasakāyikas are numerous, 8. (compared to them) the sufficient Pṛthvīkāyikas are superior in number, 9. (compared to them) the sufficient Apkāyikas are superior in number, 10. (compared to them) the sufficient Vāyukāyikas are superior in number, 11. (compared to them) the insufficient Vanaspatikāyikas are infinite times more numerous, 12. (compared to them) the insufficient Sakāyikas are superior in number, 13. (compared to them) the sufficient Vanaspatikāyikas are numerous, 14. (compared to them) the sufficient Sakāyikas are superior in number, 15. and (compared to them) the Sakāyikas are superior in number.
________________ 220 [ प्रज्ञापनासूत्र [235-6 प्र.] भगवन् ! इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक वनस्पतिकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? __[235-6 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े अपर्याप्तक वनस्पतिकायिक हैं, (उनसे) पर्याप्तक वनस्पतिकायिक संख्यातगुणे हैं। [7] एतेसि णं भंते ! तसकाइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा। [235-7 प्र.] भगवन् ! इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक त्रसकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [235-7 उ.] गौतम ! सबसे कम पर्याप्तक सकायिक हैं, (उनसे) अपर्याप्तक त्रसकायिक असंख्यातगुणे हैं। 236. एतेसिणं भंते ! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं प्राउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? ___ गोयमा ! सम्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा 1, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा 2, तेउकाइया अपज्जत्तमा असंखेज्जगुणा 3, पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया 4, प्राउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया 5, वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया 6, तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्ज. गुणा 7, पुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया 8, प्राउकाइया पज्जतगा विसेसाहिया 6, बाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया 10, वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अणंतगुणा 11, सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया 12, वणफतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा 13, सकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया 14, सकाइया विसेसाधिया 15 / [236 प्र.] भगवन् ! इन सकायिक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तक और अपर्याप्तक में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [236 उ.] गौतम ! 1. सबसे अल्प त्रसकायिक पर्याप्तक हैं, 2. (उनसे) सकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, 3. (उनसे) तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, 4. (उनसे) पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 5. (उनसे) अप्कायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं. 6. (उनसे) वायुकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 7. (उनसे) तेजस्कायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, 6. (उनसे) पृथ्वीकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 9. (उनसे) अप्कायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 10. (उनसे) वायुकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 11. (उनसे) वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनन्तगुणे हैं, 12. (उनसे) सकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 13. (उनसे) वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, 14. (उनसे) सकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, 15. और (उनसे भी) सकायिक विशेषाधिक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org