________________ तेईसवां कर्मपद] [29 पच्चक्खाणावरणे कोहे 9 एवं माणे 10 माया 11 लोभे 12 संजलणे कोहे 13 एवं माणे 14 माया 15 लोभे 16 / [1691-4 प्र.] भगवन् ! कषायवेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1661-4 उ.] गौतम ! वह सोलह प्रकार का कहा गया है / यथा-(१) अनन्तानुबन्धी क्रोध, (2) अनन्तानुबन्धी मान, (3) अनन्तानुबन्धी माया, (4) अनन्तानुबन्धी लोभ, (5-67-8) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ (-10-11-12) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया तथा लोभ, इसी प्रकार (13-14-15-16) संज्वलन क्रोध, मान, माया एवं लोभ / [5] णोकसायवेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! णवविहे पण्णत्ते। तं जहा-इत्थिवेए 1 धुरिसए 2 णसगवेदे 3 हासे 4 रती 5 अरती 6 भये 7 सोगे 8 दुगुछा / [1661-5 प्र.] भगवन् ! नोकषाय-वेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1661-5 उ.] गौतम ! वह नौ प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) स्त्रीवेद, (2) पुरुषवेद, (3) नपुंसकवेद, (4) हास्य, (5) रति, (6) अरति, (7) भय, (8) शोक और (8) जुगुप्सा। 1662. पाउए णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउठिवहे पण्णत्ते / तं जहा–णेरइयाउए जाव देवाउए / [1692 प्र.] भगवन् ! प्रायुकर्म कितने प्रकार का कहा है ? [1662 उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है / यथा-नारकायु यावत् देवायु / 1663. णामे णं भंते ! कम्मे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! बायालीसइविहे पण्णत्ते / तं जहा--गतिणामे 1 जाइणामे 2 सरीरणामे 3 सरीरंगोवंगणामे 4 सरीरबंधणणामे 5 सरीरसंघायणामे 6 संघयणणामे 7 संठाणणामे 8 वण्णणामे है गंधणामे 10 रसणामे 11 फासणामे 12 अगुरुलहुयणामे 13 उवधायणामे 14 पराघायणामे 15 आणुपुवीणामे 16 उस्सासणामे 17 प्रायवणामे 18 उज्जोयणामे 19 विहायगतिणामे 20 तसणामे 21 थावरणामे 22 सुहुमणामे 23 बादरणामे 24 पज्जत्तणामे 25 अपज्जत्तणामे 26 साहारणसरीरणामे 27 पत्तेयसरीरणामे 28 थिरणामे 26 अथिरणामे 30 सुभणामे 31 असुभणामे 32 सुभगणामे 33 दूभगणामे 34 सूसरणामे 35 दूसरणामे 36 प्रादेज्जणामे 37 अणादेज्जणामे 38 जसोकित्तिणामे 36 अजसोकित्तिणामे 40 णिम्माणणामे 41 तित्थगरणामे 42 / [1693 प्र.] भगवन् ! नामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [1693 उ.] गौतम ! वह बयालीस प्रकार का कहा है / यथा-(१) गतिनाम, (2) जातिनाम, (3) शरीरनाम, (4) शरीरांगोपांगनाम. (5) शरीर-बन्धननाम, (6) (7) संहनननाम, (8) संस्थाननाम, (8) वर्णनाम, (10) गन्धनाम, (11) रसनाम, (12) स्पर्शनाम, (13) अगुरुलघुनाम, (14) उपघातनाम, (15) पराघातनाम, (16) आनुपूर्वीनाम, (17) उच्छ्वासनाम, (18) प्रातप-नाम, (16) उद्योत-नाम, (20) विहायोगति-नाम, (21) त्रस-नाम र-संघातनाम. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org