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[Twenty-first Avagahanasthanapada] [453 which is found in the 11th Pathara. In other Patharas, the Avagahana of the Uttara Vaikriya Sharira is double the Avagahana of the Bhavadharaniy Sharira. The Uttara Vaikriya Sharira Avagahana of Balukaprabha is 62 Dhanush 2 Hasta, which is in comparison to her ninth Pathara. In other Patharas, the Avagahana is double the Bhavadharaniy Avagahana. The Uttara Vaikriya Sharira Avagahana of Pankaprabha is 125 Dhanush, which is found in her seventh Pathara. In other Patharas, the Avagahana should be understood as double the Bhavadharaniy Sharira Avagahana. The Uttara Vaikriya Sharira Avagahana of Dhumarprabhaprithvi is 250 Dhanush, which is in comparison to her fifth Pathara. The Uttara Vaikriya Avagahana of the remaining Patharas is double their respective Bhavadharaniy Avagahana. The Uttara Vaikriya Sharira Avagahana of Tamahprabhaprithvi is 500 Dhanush, which is in comparison to her third Pathara. The Uttara Vaikriya Avagahana of the first and second Pratishta is double their respective Bhavadharaniy Sharira Avagahana. The Uttara Vaikriya Sharira Avagahana of the Narakas of the seventh Prithvi is 1000 Dhanush. According to the situation, the Bhavadharaniy Uttara Avagahana of the Vaimanik Devas in the Sanatkumar and Mahendra Kalpas is 7 Hasta for those Devas whose situation is 2 Sagaropama, 6 Hasta and 11 parts of a Hasta for those whose situation is 3 Sagaropama, 6 Hasta and 3 parts of a Hasta for those whose situation is 4 Sagaropama, 6 Hasta and 2 parts of a Hasta for those whose situation is 5 Sagaropama, 6 Hasta and 1 part of a Hasta for those whose situation is 6 Sagaropama, and 6 Hasta for those whose situation is 7 Sagaropama. The Bhavadharaniy Uttara Avagahana of the Devas whose situation is 7 Sagaropama in the Brahmaloka Kalpa is 6 Hasta, 5 Hasta and 6 parts of a Hasta for those whose situation is 8 Sagaropama, 5 Hasta and 5 parts of a Hasta for those whose situation is 9 Sagaropama, 5 Hasta and 4 parts of a Hasta for those whose situation is 10 Sagaropama. The Uttara Avagahana of those whose situation is 10 Sagaropama in the Lantakakalpa is 5 Hasta and 4 parts of a Hasta, 5 Hasta and 3 parts of a Hasta for those whose situation is 11 Sagaropama, 5 Hasta and 2 parts of a Hasta for those whose situation is 13 Sagaropama, and 5 Hasta for those whose situation is 14 Sagaropama. 1. Prajnapan, Malayavritti, Patra 418 to 420.
________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] [453 जो 11 वें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपने-अपने भवधारणोय शरीर की अवगाहना से उत्तर वैक्रियशरीर को अवगाहना दुगुनी-दुगुनी होती है। बालुकाप्रभा की उत्तर वैक्रिय शरीरावगाहना उत्कृष्ट 62 धनुष 2 हाथ की होती है, जो उसके नौव पाथडे की अपेक्षा से है। अन्य पाथडों में अपने-अपने भवधारणीय अवगाहना-प्रमाण से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना होती है। पंकप्रभा को उत्कृष्ट उत्तर वैक्रियशरीरावगाहना 125 धनुष की है, जो उसके सातवें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में अपनी-अपनी भवधारणीय शरीरावगाहना से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना समझ लेनी चाहिए। धूमप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरक्रियशरीरावगाहना 250 धनुष की है, जो उसके पांचवें पाथड़े की अपेक्षा से है। बाकी के पाथड़ों की उत्तरवैक्रियावगाहना, अपनी-अपनी भवधारणीयअवगाहना से दुगुनी-दुगुनी है / तमःप्रभापृथ्वी की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना 500 धनुष की है, जो उसके तीसरे पाथड़े की अपेक्षा से है / प्रथम और द्वितीय प्रस्तट की उत्तरवैक्रियावगाहना अपनी-अपनी भवधारणीय शरोरावगाहना से दुगुनी-दुगुनी होती है / सातवीं पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रियशरीरावगाहना 1000 धनुष को होती स्थिति के अनुसार वैमानिक देवों की भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना-सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में जिन देवों की स्थिति दो सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय अवगाहना पूरे सात हाथ को होती है, जिनकी स्थिति 3 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 6 हाथ तथा एक हाथ के 11. भाग की है / जिनकी स्थिति 4 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 6 हाथ और एक हाथ के 3. भाग की है, जिनकी स्थिति 5 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 6 हाथ और एक हाथ के 2 भाग की है, जिनको स्थिति 6 सागरोपम को है, उनकी अवगाहना 6 हाथ और , भाग की है / जिनकी स्थिति पूरे 7 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे 6 हाथ की है / ब्रह्मलोक और लान्तककल्प-जिन देवों की स्थिति ब्रह्मलोक कल्प में 7 सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना पूरे 6 हाथ की है, जिनकी स्थिति 8 सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय शरीरावगाहना 5 हाथ एवं 6 हाथ की होती है, जिनकी स्थिति नौ सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 5 हाथ और हाथ की होती है / जिनकी स्थिति 10 सागरोपम की हे, उनकी अवगाहना 5 हाथ और हाथ की होती है / लान्तककल्प में जिनकी स्थिति 10 सागरोपम की है, उनकी उत्कृष्ट अवगाहना 5 हाथ और हाथ की होती है, जिनकी स्थिति 11 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 5 हाथ और३ हाथ की होती है। जिनकी स्थिति 13 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 5 हाथ और हाथ की होती है। तथा जिनकी स्थिति 14 सागरोपम को है, उनकी अवगाहना पूरे 5 हाथ की होती है / 1. प्रज्ञापना, मलयवृत्ति, पत्र 418 से 420 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org