________________ प्रकाशकीय प्रोपपातिक नामक प्रथम उपांग के पश्चात् द्वितीय उपांग राजप्रश्नीय पाठकों के कर-कमलों में समर्पित किया जा रहा है। यह जिनागम ग्रन्थमाला का पन्द्रहवा ग्रन्थ है। प्रस्तुत सूत्र सूत्रकृतांग का उपांग माना गया है। अनेक दृष्टियों से यह एक महत्त्वपूर्ण प्रागम है, जिसमें सूर्याभदेव संबंधी विस्तृत विवेचन है। सूर्याभदेव, राजा प्रदेशी का जीव था जो विशिष्ट धर्माराधना करके देवरूप में उत्पन्न हुआ और देवलोक से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा। राजा प्रदेशी पहले अनात्मवादी नास्तिक था। वह भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के महामुनि केशी कुमारथमण द्वारा प्रतिबुद्ध हया। दोनों का प्रात्मा संबंधी संवाद अत्यन्त बोधप्रद है। आज के जिज्ञासूत्रों के लिए भी वह अतीव उपकारक है। भगवतीसूत्र का प्रथम भाग मुद्रित हो चुका है और द्वितीय भाग मुद्रित हो रहा है। प्रज्ञापना सूत्र का मुद्रण शीघ्र प्रारंभ होने वाला है। प्रस्तुत पागम का अनुवाद वाणीभूषण पं. र. मुनिश्री रतनमुनिजी म. ने किया है, जो ग्रन्थमाला के सम्पादकमण्डल में हैं। आपके इस उदार सहयोग के लिए समिति अत्यन्त आभारी है। श्री देवकुमारजी शास्त्री, साहित्यरत्न ने इसके सम्पादन-परिमार्जन आदि में जो मूल्यवान् योग दिया है, वह भी स्मरणीय है। श्रमणसंघ के युवाचार्य पं. प्र. श्री मधुकर मुनिजी म. सा. की प्रबल आगमभक्ति एवं उत्कट लगन तथा श्रम के फलस्वरूप ही समिति इस पुनीत कार्य में अग्रसर हो रही है। उनका आभार व्यक्त करने के लिए शब्द पर्याप्त नहीं हैं। ___ समस्त अर्थसहयोगी महानुभावों के प्रति भी हम कृतज्ञ हैं, जिनकी उदारतापूर्ण सहायता से हम निश्चिन्त होकर इस प्रकाशन को आगे बढ़ा रहे हैं। प्राशा है मागमप्रेमी पाठक इससे लाभ उठाकर आत्मकल्याण के भागी बनेंगे। रतनचंद मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष जतनराज मेहता प्रधानमंत्री श्री प्रागम-प्रकाशन समिति, ब्यावर चांदमल विनायकिया मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org