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________________ होता था / सूत्रकृतांग में 'कुक्कयय' और 'वेणुपलाशिय' बांसुरियों का वर्णन है, जो दांतों में बांये हाथ से पकड़ कर वीणा की भांति दाहिने हाथ से बजाई जाती थी।५० भगवतीसूत्र की टीका में५१, जीवाभिगम५२, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति५३, निशीथसूत्र५४, आदि में भी अनेक वाद्यों का उल्लेख है। बृहत्कल्पभाष्य५५ में भंभा, मुकुन्द, मद्दल, कड़म्ब, झल्लरी, हुडुक्क, कांस्यताल, काहल, तलिमा, वंश, पणव, शंख इन बारह वाद्यों का उल्लेख है। रामायण५६ व महाभारत५७ में मड्डक, पटह, वंश, विपञ्ची, मृदंग, पणव, डिडिम, आडंबर और कलशी का उल्लेख है। भरत के नाट्यशास्त्र में, ततवाद्यों में, विपञ्ची और चित्रा को मुख्य और कच्छपी एवं घोषका को उनका अंगभूत माना है / 58 चित्रवीणा सात तंत्रियों वाली होती थी और वे तंत्रियां अंगुलियों से बजाई जाती थीं। विपञ्ची में नौ तंत्रियां होती थी, जिसका वादन 'कोण' अर्थात् वीणावादन के दण्ड के द्वारा किया जाता था! यद्यपि भरत ने कच्छपी और घोषका के स्वरूप के सम्बन्ध में कुछ भी प्रकाश नहीं डाला है, किन्तु संगीतरत्नाकर ग्रन्थ के अनुसार घोषका एकतंत्री वाली वीणा थी और कच्छपी सम्भव है, सात तंत्रियों से कम वाली वीणा हो। 'संगीतदामोदर' में तत के 29 प्रकार बताये हैं-अलावणी, ब्रह्मवीणा, किन्नरी, लघुकिन्नरी, विपञ्ची, वल्लकी, ज्येष्ठा, चित्रा, घोषवली, जपा, हस्तिका, कुनजिका, कर्मी, सारंगी, पटिवाविनी, त्रिशवी, शतचन्द्री, नकुलोष्ठी, ढंसवी, ऊदंबरी, पिनाकी, निःशंक, शुष्फल, गदावारणहस्त, रुद्र, स्वरमणमल, कपिलास, मधुस्वंदी और घोपा / ' आयारचला६२ और निशीथ६३ में तत के अन्तर्गत वीणा, विपञ्ची, वद्धिसग, तुणय, पवण, तुम्बबिणिया, ढ़कुण, और जोड़य ये आठ वाद्य लिये हैं। वितत-चम से आबद्ध वाद्य वितत है। गीत और वाद्य के साथ ताल एवं लय के प्रदर्शन करने हेतु इन वाद्यों का प्रयोग होता था। इनमें मृदंग, पवण [तन्त्रीयुक्त अवनद्य वाद्य], दर्दुर [कलश के आकार वाला चर्म 50. सूत्रकृतांग-४. 2. 7. 51. भगवतीसत्र टीका-५. 4. पृष्ठ-२१६ अ 52. जीवाभिगम-३, पृष्ठ-१४५-प्र 53. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-२, पृष्ठ-१००-अ आदि 54. निशीथसूत्र-१७. 135-138 55. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका–२४ वृत्ति 56. रामायण-५.१०.३८ ग्रादि 57. महाभारत-७.८२.४ 58. विपंची चैव चित्रा च दारवीध्वंगसंज्ञिते / कच्छपीघोषकादीनि प्रत्यंगानि तथैव च / / -भरतनाट्य-३३ / 15 सप्ततन्त्री भवेत चित्रा विबंची नवतन्त्रका। विपंची कोणवाद्या स्याच्चित्रा चांगलिवादना / / -भरतनाट्य-२९ / 114 60. घोषकाचकतन्त्रिका / —संगीतरत्नाकर, वाद्याध्याय, पृष्ठ 248 61. प्राचीन भारत के वाद्ययन्त्र--कल्याण (हिन्दुसंस्कृति अङ्क) पृष्ठ-७२१-७२२ से उद्धत 62. आयारचूला–११ / 2 / 63. निसोहझयणं-१७ / 138 - - - ---- [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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