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________________ 206] [राजप्रश्नीय सूत्र वेस्संति, मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणं प्रामंतेत्ता तो पच्छा व्हाया कायबलिकम्मा जाव अलंकिया भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया ते मित्तणाइ-जाव परिजणेण सद्धि विउलं असणं प्रासाएमाणा विसाए. माणा परिभुजेमाणा परिभाएमाणा एवं चेव णं विहरिस्संति, जिमियभुत्तत्तरागया वि य णं समाणा प्रायंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्तणाइ-जाव परिजणं विउलेणं वस्थगंघमल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति सम्माणिस्संति तस्सेव मित-जाव-परिजणस्स पुरतो एवं वइस्संति जम्हा णं देवाणप्पिया ! इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइण्णा जाया, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स दढपइण्णे णामेणं / तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज करिस्संति---दढपइण्णो य दढपइण्णो य। ___ तए णं तस्स अम्मापियरो आणुपुवेणं ठितिवडियं च चंदसूरियदरिसणं च धम्मजागरियं च नामधिज्जकरणं च पजेमणगं च पडिवद्धावणगं च पचंकमणगं च कन्नवेहणं च संवच्छरपडिलेहणगं च चूलोवणयं च अन्नाणि य बहूणि गम्भाहाणजम्मणाइयाई महया इड्डीसक्कारसमुदएणं करिस्संति / २८०–तत्पश्चात् उस दारक के गर्भ में आने पर माता-पिता की धर्म में दृढ प्रतिज्ञा-श्रद्धा होगी। उसके बाद नौ मास और साढ़े सात रात्रि-दिन बीतने पर दारक की माता सुकुमार हाथ-पैर वाले शुभ लक्षणों एवं परिपूर्ण पांच इन्द्रियों और शरीर वाले, सामुद्रिक शास्त्र में बताये गये शारीरिक लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों और गुणों से युक्त, माप, तोल और नाप में बराबर, सुजात, सर्वांगसुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकार वाले, कमनीय, प्रियदर्शन एवं सरूपवान् पुत्र को जन्म देगी। __ तब उस दारक के माता-पिता प्रथम दिवस स्थितिपतिता (कुलपरंपरागत क्रियाओं से पुत्रजन्मोत्सव) करेंगे / तीसरे दिन चन्द्रदर्शन और सूर्यदर्शन सम्बंधी क्रियायें करेंगे। छठे दिन रात्रिजागरण करेंगे / ग्यारह दिन बीतने के बाद बारहवें दिन जातकर्म संबन्धी अशुचि की निवृत्ति के लिये घर झाड़बुहार और लीप-पोत कर शुद्ध करेंगे / घर की शुद्धि करने के बाद अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप विपुल भोजनसामग्री बनवायेंगे और मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजन-संबन्धियों एवं दास-दासी आदि परिजनों, परिचितों को आमंत्रित करेंगे / इसके बाद स्नान, बलिकर्म, तिलक आदि कौतुक-मंगलप्रायश्चित्त यावत् प्राभूषणों से शरीर को अलंकृत करके भोजनमंडप में श्रेष्ठ प्रासनों पर सुखपूर्वक बैठकर मित्रों यावत् परिजनों के साथ विपुल अशनादि रूप भोजन का आस्वादन, विशेष रूप में प्रास्वादन करेंगे, उसका परिभोग करेंगे, एक दूसरे को परोसेंगे और भोजन करने के पश्चात् आचमनकुल्ला आदि करके स्वच्छ, परम शुचिभूत होकर उन मित्रों, ज्ञातिजनों यावत् परिजनों का विपुल वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों आदि से सत्कार-संमान करेंगे और फिर उन्हीं मित्रों यावत् परिजनों से कहेंगे देवानुप्रियो ! जब से यह दारक माता की कुक्षि में गर्भ रूप से आया था तभी से हमारी धर्म में दृढ प्रतिज्ञा-श्रद्धा हुई है, इसलिये हमारे इस बालक का 'दृढप्रतिज्ञ' यह नाम हो / इस तरह उस दारक के माता-पिता 'दृढप्रतिज्ञ' यह नामकरण करेंगे। इस प्रकार से उसके माता-पिता अनुक्रम से 1. स्थितिपतिता, 2, चन्द्र-सूर्यदर्शन, 3. धर्मजागरण, 4. नामकरण, 5. अन्नप्राशन 6. प्रतिवर्धापन (आशीर्वाद, अभिनंदन-संमान समारोह), Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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