SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विराजे / राजा-रानी तथा अन्य नगर-निवासी प्रभु महाबीर के पावन प्रवचन को श्रवण करने के लिए पहुँचे। आगमसाहित्य में राजा 'सेय' का अन्यत्र कहीं भी विशेष परिचय नहीं पाया है। स्थानांगसूत्र के पाठवें स्थान में भगवान महावीर ने जिन पाठ राजाओं को दीक्षित किया, उन में एक राजा का नाम 'सेय' है। आचार्य अभयदेव के अनुसार यही सेय राजा था, जिसने भगवान महावीर के पास प्रव्रज्या अंगीकार की थी।35 प्राचार्य गुणचन्द्र ने लिखा है-एक बार भगवान् महावीर पोतनपुर में पधारे, तब शंख, वीर, शिव, भद्र आदि राजामों ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की थी। इससे विज्ञों का यह अभिमत है कि ये सभी राजा-गण एक ही दिन दीक्षित हुए थे।४० मलयगिरि ने 'सेय' का संस्कृत रूपान्तर श्वेत किया है। इसी तरह धारिणी नाम अन्य ग्राममों में अनेक स्थलों पर पाया है। प्रोपपातिक सूत्र में राजा कणिक की रानी का नाम भी धारिणी है तथा अन्यत्र भी इस नाम का प्रयोग हुया है / सम्भव है, गर्भ को धारण करने के कारण 'धारिणी' कहलाती हो / भले ही उसका व्यक्तिगत नाम अन्य कुछ भी रहा हो / वास्तुकला का उत्कृष्ट रूप : विमान सौधर्म स्वर्ग के 'सूर्याभ' नामक देव ने अपने दिव्य ज्ञान से निहारा-श्रमण भगवान् महावीर प्रामलकप्पा के प्रम्बसाल चैत्य में विराज रहे हैं। उसने वहीं से भगवान् को वन्दन किया और अपने प्राभियोगिक देवों को आदेश दिया कि वे शीघ्र ही प्रभु महावीर की सेवा में पहुँचे और वहाँ की आसपास की भूमि को साफ कर सुगन्धित द्रव्यों से महका दें। तदनुसार प्राज्ञा का पालन किया गया / सूर्याभ देव ने अपने सेनापति को बुलाकर अत्यन्त कलात्मक विमान की रचना करने की आज्ञा दी। विमान का वर्णन वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपूर्व एवं अदभत है। विमान के तीन प्रोर सोपान बनाये गये थे। तीनों सोपानों के सामने मणि-मुक्ताओं और तारिकाओं से रचित तोरण लगाये गये। उन तोरणों पर पाठमंगल स्थापित किये गये। रंग-बिरंगी ध्वजायें, छत्र, घण्टे और सुन्दर कमलों के गुच्छे लगाये गये। विमान का केवल बाह्य भाग ही सुन्दर नहीं था अपितु अन्दर के भाग में इस प्रकार कलात्मक मणियां जड़ी गई थी कि दर्शक देखते ही मंत्रमुग्ध हो जायें। तथा इस प्रकार के चित्र उकित किये गये थे कि अवलोकन करने वाला ठगा-सा रह जाय / विमान के मध्य में प्रेक्षाग्रह का निर्माण किया गया, जिसमें अनेक खम्भे बनाये गये। ऊँची वेदिकायें, तोरण, शाल-भंजिकायें स्थापित की गई / ईहामृग, वृषभ, हाथी, घोड़े, वनलता प्रभति के सुन्दर चित्र अंकित किये गये / स्वर्णमय और रत्नमय स्तूप स्थापित किये गये। सुगन्धित द्रव्यों से उसे महकाया गया। मण्डप के चारों ओर वाद्यों की सुरीली स्वर-लहरियां झनझनाने लगी। मण्डप के मध्यभाग में प्रेक्षकों के बैठने का स्थान निर्मित किया गया। उनमें एक पीठिका स्थापित की। उस पर सिंहासन रखा, जो कलात्मक था। सिंहासन के आगे मुलायम पादपीठ रखा / सिंहासन श्वेत वर्ण के विजयदूष्य से सुशोभित था। उसके मध्य में अंकुश के प्रकार की एक खूटी थी, जिस पर मोतियों की मालायें लटक रही थीं। अनेक प्रकार के रत्नों के हार दमक रहे थे / इस विमान में सूर्याभ देव की मुख्य देवियों तथा अन्य प्राभ्यन्तर परिषद्, सेनापति आदि के बैठने के लिए भद्रासन बिछे हुए थे। मूर्याभ देव अपने स्थान पर आसीन हया और अन्य देवगण भी अपनेअपने ग्रासनों पर अवस्थित हुए। विमान अत्यन्त द्रत गति से चला। असंख्यात द्वीप, समुद्रों को लांघता हा 38. स्थानाङ्ग वृत्ति, पत्र-४०८ 39. "पत्तो पोयणपुर, तहि च संखवीरसिवभद्दपमुहा नरिंदा दिक्खा गाहिया"। -श्री गुणचन्द महावीरचरित्त, प्रस्ताव 8, पत्र 337 40. ठाणं-जैन विश्वभारती, लाडनू, पृष्ठ-८३७ [22] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy