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________________ सूर्याभदेव द्वारा सिद्धायतन के देवच्छंदक आदि की प्रमार्जना | [119 संसार का अन्त करने वाले श्रेष्ठ धर्म के चक्रवर्ती, अप्रतिहत-श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन के धारक, कर्मावरण या कषाय रूप छद्म के नाशक, रागादि शत्रुओं को जीतने वाले तथा अन्य जीवों को भी कर्मशत्रुओं को जीतने के लिये प्रेरित करने वाले, संसारसागर से स्वयं तिरे हुए तथा दूसरों को भी तिरने का उपदेश देने वाले, बोध को प्राप्त तथा दूसरों को भी उपदेश द्वारा बोधि प्राप्त कराने वाले, स्वयं कर्ममुक्त एवं अन्यों को भी कर्ममुक्त होने का उपदेश देने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तथा शिव-उपद्रव रहित, अचल, नीरोग, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध अपुनरावृत्ति रूप (जन्म-मरण रूप संसार से रहित) सिद्धगति नामक स्थान में विराजमान सिद्ध भगवन्तों को वन्दन-नमस्कार हो। सूर्याभदेव द्वारा सिद्धायतन के देवच्छन्दक आदि की प्रमार्जना २००-वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव देवच्छंदए जेणेव सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ, सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जति, दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं प्रालिहइ कयग्गहहिय जाव' पुजोक्यारकलियं करेइ, करित्ता धूवं दलयइ, जेणेव सिद्धायतणस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छति, स्थगं परामसह. टारचेडीयो सालभंजियायो य बालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जह, दिवाए दगधाराए प्रभुक्खेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुस्फारुहणं मल्ला० जाव' अामरणारुहणं करेइ, करेता भासत्तोसत्त जाव धूवं दलयइ / जेणेव दाहिणिल्ले दारे मुहमंडवे जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ लोमहत्थगं परामसइ, बहुमज्झदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जइ दिव्वाए दगधाराए प्रभुक्खेइ, सरसेणं गोसोसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं प्रालिहइ, कयग्गहगहिय जाव धूवं दलयइ / जेणेव दाहिणिलस्स महमंडवस्स पच्चथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ दारचेडीयो य सालभंजियाश्रो य वालरूवए य लोमहत्थेणं पमज्जइ, दिवाए दगधाराए०४ सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, पुष्फारहणं जाव प्राभरणारहणं करेइ प्रासत्तोसत्त० कयगाहिय० घुवं दलया। जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंभपंती तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थं परामुसइ थंभे य सालभंजियारो य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जइ जहा चेव पच्चथिमिल्लस्स दारस्स जाव धूवं दलयइ / जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स पुरथिमिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामसति दारचेडीग्रो तं चेव सव्वं / जेणेव दाहिणिल्लस्स मुहमंडवस्स दाहिणिल्ले दारे तेणेव उवागच्छइ दारचेडीयो तं चेव सव्वं / जेणेव दाहिणिल्ले पेच्छाघरमंडवे, जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडबस्स बहुमज्भदेसभागे, जेणेव वइरामए अक्खाइए, जेणेव मणिपेढिया, जेणेव सीहासणे, तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ. 1. देखें सूत्र संख्या 198 2. देखें सूत्र संख्या 198 3. देखें सूत्र संख्या 198 4. दगधाराए के अनन्तर पागत० से 'अब्भुक्खेइ' शब्द ग्रहण करना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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