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________________ [राजप्रश्नीयसूत्र पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्तानो, पत्तेयं-पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्तायो / तासि णं गंदाणं पुखरिणीणं तिदिसि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णता। तिसोवाणपडिरूवगाणं वण्णो , तोरणा, झया, छत्तातिछत्ता / १७०-उन माहेन्द्रध्वजाओं के आगे एक-एक नन्दा नामक पुष्करिणी बनी हुई है। ये पुष्करिणियाँ सौ योजन लंबी, पचास योजन चौड़ी, दस योजन ऊंडी-गहरी हैं और स्वच्छनिर्मल हैं आदि वर्णन पूर्ववत् यहाँ जानना चाहिए। इनमें से कितनेक का पानी स्वाभाविक पानी जैसा मधुर रस वाला है / ये प्रत्येक नन्दा पुष्करिणियां एक-एक पद्मवर-वेदिका और वनखंडों से घिरी हुई हैं। इन नन्दा पुष्करिणियों की तीन दिशाओं में अतीव मनोहर त्रिसोपान-पंक्तियाँ हैं। इन त्रिसोपान-पंक्तियों के ऊपर तोरण, ध्वजायें, छत्रातिछत्र सुशोभित हैं आदि वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए। सुधर्मासभावर्ती मनोगुलिकायें गोमानसिकायें १७१–सभाए णं सुहम्माए अडयालीसं मणोगुलियासाहस्सोमो पण्णत्तामो, तं जहापुरस्थिमेणं सोलससाहस्सोमो, पच्चस्थिमेणं सोलससाहस्सीग्रो, दाहिणणं अट्ठसाहस्सोमो, उत्तरेणं अट्ठ- . साहस्सोयो। तासु णं मणोगलियासु बहवे सुवण्णरूपमया फलगा पण्णत्ता / तेसु णं सुबन्न रूपमएसु फलगेसु बहवे वइरामया मागदंता पण्णता। तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु किण्हसुत्तवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा चिट्ठति / १७१-सुधर्मा सभा में अड़तालीस हजार मनोगुलिकायें (छोटे-छोटे चबूतरे) हैं, वे इस प्रकार हैं—पूर्व दिशा में सोलह हजार, पश्चिम दिशा में सोलह हजार, दक्षिण दिशा में आठ हजार और उत्तर दिशा में आठ हजार / उन मनोगुलिकाओं के ऊपर अनेक स्वर्ण एवं रजतमय फलक-पाटिये और उन स्वर्ण रजतमय पाटियों पर अनेक वज्ररत्नमय नागदंत लगे हैं। उन वज्रमय नागदंतों पर काले सूत से बनी हुई गोल लंबी-लंबी मालायें लटक रही हैं / १७२-समाए णं सुहम्माए अडयालीसं गोमाणसियासाहस्सीनो पन्नत्तानो। जह मणोगुलिया जाव णागदंतगा। तेसु णं णागदंत एसु बहवे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता / तेसु णं रययामएसु सिक्कगेसु बहवे वेरुलियामइयो धूवघडियानो पण्णत्तानो / ताप्रो धूवघडियानो कालागुरुपवर जाव चिट्ठति।। १७२--सुधर्मा सभा में अड़तालीस हजार गोमानसिकायें (शय्या रूप स्थानविशेष) रखी हुई हैं। नागदन्तों पर्यन्त इनका वर्णन मनोगुलिकाओं के समान समझ लेना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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