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________________ स्तूप वर्णन ] १६५–उन प्रेक्षागृह मंडपों के अतीव रमणीय समचौरस भूमिभाग के मध्यातिमध्य देश में एक-एक वज्ररत्नमय अक्षपाटक-मंच कहा गया है / उन वज्ररत्नमय अक्षपाटकों के भी बीचों-बीच पाठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और विविध प्रकार के मणिरत्नों से निर्मित निर्मल यावत् प्रतिरूप---असाधारण सुन्दर एक-एक मणिपीठिकायें बनी हुई हैं। उन मणिपीठिकानों के ऊपर एक-एक सिंहासन रखा है। भद्रासनों आदि आसनों रूपी परिवार सहित उन सिंहासनों का वर्णन करना चाहिए। उन प्रेक्षागृह मंडपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें, छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं। स्तूप-वर्णन १६६-तेसि णं पेच्छाघरमंडवाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मणिपेढियाम्रो पण्णत्तायो / ताप्रोणं मणिपेढियातो सोलस-सोलस जोयगाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमईयो अच्छाप्रो पडिरूवानो। तासि णं उरि पत्त यं-पत्त यं थमे पग्णत्ते / ते णं थूभा सोलस-सोलस जोयणाई प्रायामविक्खंभेणं, साइरेगाई सोलस-सोलस जोयणाई उट्ट उच्चत्तणं, सेया संखंक (कुद-दगरय-प्रमय-महियफेणपुजसंन्निगासातो) सव्वरयणामया अच्छा जाव (सण्हा-लण्हा-घट्ठा-मट्टा-णोरया-निम्मला-निष्पकानिक्कंकडच्छाया-सप्पमा-समिरीया-सउज्जोया पासादीया-दरिसणिज्जा अभिरूवा) पडिरूवा / तेसि णं थूमाणं उरि अट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता जाव' सहस्सपत्तहत्थया। तेसि णं थभाणं पत्त यं-पत्त यं चउहिसि मणि-पेढियातो पण्णत्ताओ। तानो णं मणिपेढियातो अट्ट जोयणाई प्रायामविक्खंभणं, चत्तारि जोवणाई बाहल्लेणं, सव्वमणि-मईयो अच्छाप्रो जाव पडिरूवातो। तासि णं मणिपेढियाणं उरि चत्तारि जिणपडिमातो जिणुस्सेहपमाणमेतानो संपलियंकनिसन्नाओ, थूभाभिमुहीमो सन्निक्खित्तानो चिट्ठति, तंजहा-उसभा, वद्धमाणा, चंदाणणा वारिसेणा / १६६--उन प्रेक्षागृह मंडपों के प्रागे एक-एक मणिपीठिका है। ये मणिपीठिकायें सोलहसोलह योजन लम्बी-चौड़ी पाठ योजन मोटी हैं / ये सभी सर्वात्मना मणिरत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप हैं / उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े समचौरस और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे, शंख, अंक रत्न, कुन्दपुष्प, जलकण, मंथन किये हुए अमृत के फेनपुंज सदृश प्रभा वाले) श्वेत, सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ यावत् (चिकने, सलौने घुटे हुए, मृष्ट, शुद्ध, निर्मल पंक (कीचड़)रहित, आवरण रहित परछाया वाले, प्रभा, चमक और उद्योत वाले, मन को प्रसन्न करने वाले, देखने योग्य, मनोहर) असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं। 1. देखें सूत्र संख्या 27, 28, 29. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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