________________ 84] [ राजप्रश्नीयसूत्र ऊपर बादर उद्धार-पल्योपम को समझने के लिये कुए में जिन बालानों का संकेत किया है। उनमें से प्रत्येक बालाग्र के बुद्धि के द्वारा असंख्यात खंड-खंड करके उन सूक्ष्म खंडों की पूर्ववणित कुए में ठसाठस भरा जाये और फिर प्रतिसमय एक-एक खंड को उस कुए से निकाला जाये / ऐसा करने पर जितने काल में वह कुया निःशेष रूप से खाली हो जाये, उस समयावधि को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहते हैं / इसका कालप्रमाण संख्यात करोड़ वर्ष है। इस सूक्ष्म उद्धारपल्योपम से द्वीप और समुद्रों की गणना की जाती है। प्रद्धापल्योपम-अद्धा शब्द का अर्थ है काल या समय / प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित फ्ल्योपम का प्राशय इसी पल्योपम से है / इसका उपयोग चतुर्गति के जीवों की प्रायु और कर्मों की स्थिति वगैरह को जानने में किया जाता है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है-पूर्वोक्त प्रमाण वाले कुए को बालानों से ठसाठस भरने के बाद सौ-सौ वर्ष के अनन्तर एक-एक बालान को निकाला जाये और इस प्रकार से निकालतेनिकालते जितना काल लगे, निकालने पर कुप्रा खाली हो जाये, उतने काल प्रमाण को बादर अद्धा पल्योपम कहते हैं। ऊपर कहे गये बादर अद्धापल्योपम के लिये जो बालान लिये गये हैं, उनके बुद्धि द्वारा असंख्यात अदृश्य खंड करके कुए को ठसाठस भरा जाये और फिर प्रति सौ वर्ष बाद एक खंड को निकाला जाये एवं इस प्रकार से निकालते-निकालते जब कुआ खाली हो जाये और उसमें जितना समय लगे, उतने कालप्रमाण को सूक्ष्म श्रद्धापल्योपम कहते हैं। क्षेत्रपल्योपम-उद्धार पल्योपम के प्रसंग में जिस एक योजन लम्बे-चौड़े और गहरे कुए का उल्लेख है उसको पूर्व की तरह एक से सात दिन तक के भोगभूमिज के बालानों से ठसाठस भर दो। वे अग्रभाग अाकाश के जिन प्रदेशों का स्पर्श करें, उनमें से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में समस्त प्रदेशों का अपहरण हो जाये, उतने समय का प्रमाण बादर क्षेत्र पल्योपम कहलाता है / यह काल असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवपिणी काल के बराबर होता है। बादरक्षेत्र पल्योपम का प्रमाण जानने के लिये जिन बालानों का संकेत है, उनके असंख्यात खंड करके पूर्ववत् पल्य में भर दो / वे खंड उस पल्य में प्राकाश के जिन प्रदेशों का स्पर्श करें और जिन प्रदेशों का स्पर्श न करें, उनमें से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट दोनों प्रकार के सभी प्रदेशों का अपहरण किया जा सके उतने समय के प्रमाण को सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपमकाल कहते है / इसका काल भी असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण है। जो बादर क्षेत्र पल्योपम की अपेक्षा असंख्यात गुना अधिक जानना चाहिये। इसके द्वारा दृष्टिवाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार किया जाता है। अनुयोगद्वार सूत्र और प्रवचनसारोद्धार में पल्योपम का विस्तार से विवेचन किया गया है / दिगम्बर साहित्य में पल्योपम का जो वर्णन किया गया है, वह उक्त वर्णन से कुछ भिन्न है / उसमें क्षेत्र पल्योपम नाम का कोई भेद नहीं है और न प्रत्येक पल्योपम के बादर और सूक्ष्म भेद ही किये हैं। वहाँ पल्योपम के तीन प्रकारों के नाम इस प्रकार हैं-१. व्यवहारपल्य, 2. उद्धारपल्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org