SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वारवर्णन [66 तलमणुलिहंतसिहरा, जालंतररयणपंजरुम्मिलिय व्व, मणिकणगथूभियागा, वियसियसयवत्तपोंडरीयतिलगरयणद्धचंदचित्ता, णाणामणिदामालंकिया अंतो बहिं च सहा तवणिज्जवालुया-पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासादीया दरिसणिज्जा जावदामा / १३१-उन प्रकण्ठकों के ऊपर एक-एक प्रासादावतंसक (श्रेष्ठमहल-विशेष) है / ये प्रासादावंतसक ऊँचाई में अढाई सौ योजन ऊँचे और सवा सौ योजन चौड़े हैं, चारों दिशाओं में व्याप्त अपनी प्रभा से हंसते हुए से प्रतीत होते हैं / विविध प्रकार के मणि-रत्नों से इनमें चित्र-विचित्र रचनायें बनी हुई हैं / वायु से फहराती हुई, विजय को सूचित करने वाली वैजयन्तीपताकाओं एवं छत्रातिछत्रों (एक दूसरे के ऊपर रहे हुए छत्रों) से अलंकृत हैं, अत्यन्त ऊँचे होने से इनके शिखर मानो आकाशतल का उल्लंघन करते हैं। विशिष्ट शोभा के लिये जाली-झरोखों में रत्न जड़े हुए हैं। वे रत्न ऐसे चमकते हैं मानों तत्काल पिटारों से निकाले हुए हों। मणियों और स्वर्ण से इनकी स्तूपिकायें निर्मित (शिखर) हैं / तथा स्थान-स्थान पर विकसित शतपत्र एवं पुंडरीक कमलों के चित्र और तिलकरत्नों से रचित अर्धचन्द्र बने हुए हैं / वे नाना प्रकार की मणिमय मालाओं से अलंकृत हैं / भीतर और बाहर से चिकने-कमनीय हैं। प्रांगणों में स्वर्णमयी बालुका बिछी हुई है, इनका स्पर्श सूखप्रद है। रूप शोभासम्पन्न है। देखते ही चित्त में प्रसन्नता होती है, वे दर्शनीय हैं / यावत् मुक्तादामों आदि से सुशोभित हैं / विवेचन-'जाव दामा' पद से यह सूचित किया है कि यानविमान के प्रसंग में जिस तरह उसकी अन्तर्भूमि, प्रेक्षागृह मंडप, रंगमंच, सिंहासन, विजय दृष्य, वज्राकुश एवं मुक्तादामों का वर्णन किया है, उसी प्रकार समस्त वर्णन यहाँ भी समझ लेना चाहिये। संक्षेप में उक्त वर्णन का सारांश इस प्रकार है इन प्रासादावतंसकों का अन्तर्वर्ती भूभाग आलिंग पुष्कर, मृदंगपुष्कर, सूर्यमंडल, चन्द्रमंडल अथवा कीलों को ठोक और चारों ओर से खींचकर सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह आदि के चमड़े के समान अतीव सम, रमणीय है एवं अनेक प्रकार के शुभ लक्षणों तथा आकार प्रकार वाले काले, पीले, नीले आदि वर्गों की मणियों से उपशोभित है। - प्रत्येक प्रासादावतंसक के उस समभूमि भाग के बीचों-बीच वेदिकानों, तोरणों, पुतलियों आदि से अलंकृत प्रेक्षागृहमंडप बने हुए हैं और उन मंडपों के भी मध्यभाग में स्थित मणिपीठिकाओं पर ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर आदि-आदि के चित्रामों से युक्त स्वर्ण-मणि रत्नों से बने हुए सिंहासन रखे हैं। __ सिंहासनों के ऊपरी भाग में शंख, कुद-पुष्प, क्षीरोदधि के फेनपुज आदि के सदृश श्वेतधवल विजयदृष्य बंधे हैं और उनके बीचों बीच वज्ररत्नों से बने हुए अकुश लगे हैं। उन अकुशों में कुभप्रमाण, अर्धकुभ प्रमाण जैसे बड़े-बड़े मुक्तादाम (झूमर) लटक रहे हैं / ये सभी दाम सोने के लंबूसकों, मणि रत्नमयी हारों-अर्धहारों से परिवेष्टित हैं तथा हवा के झोकों से परस्पर एक-दूसरे से टकराने पर कर्णप्रिय ध्वनि से समीपवर्ती प्रदेश को व्याप्त करते हुए असाधारण रूप से सुशोभित हो रहे हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003481
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy