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________________ 46] [औषपातिकसूत्र के समान कर व्यवहार करनेवाले-अपकारी तथा चन्दन के समान सौम्य व्यवहार करनेवाले ---उपकारी-दोनों के प्रति राग-द्वेष-रहित समान भाव लिये रहते थे। वे मिट्टी के ढेले और स्वर्ण को एक समान समझते थे। सुख और दुःख में समान भाव रखते थे। वे ऐहिक तथा पारलौकिक प्रासक्ति से बंधे हए नहीं थे—अनासक्त थे। वे संसारपारगामी-नारक, तिर्यञ्च, मनष्य, देव-चतुर्गतिरूप संसार के पार पहुंचने वाले ---मोक्षाभिगामी तथा कर्मों का निर्घातन-नाश करने हेतु अभ्युत्थित-उठे हुए-प्रयत्नशील होते हुए विचरण करते थे। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधूओं के लिए ग्राम में एकरात्रिक तथा नगर में पञ्चरात्रिक प्रवास का उल्लेख हुआ है। जैसा कि वृत्तिकार ने संकेत किया है, वह प्रतिमाकल्पिकों को उद्दिष्ट करके ' है / साधारणतः साधुनों के लिए मासकल्प विहार विहित है। यहाँ अनुवाद में एक रात्रिक तथा पञ्चरात्रिक का जो अर्थ किया गया है, वह परम्परानुसृत है, सर्व-सामान्य विधान है। तप का विवेचन 30 तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे अभंतरबाहिरए तवोवहाणे होत्था / तंजहा-अभितरए छविहे, बाहिरए वि छविहे। से कि तं बाहिरए ? छबिहे, पण्णत्ते / तं जहा-१ अणसणे 2 ओमोयरिया 3 भिक्खायरिया 4 रसपरिच्चाए 5 कायकिलेसे 6 पडिसंलोणया। से कि तं अणसणे ? अणसणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-१ इत्तरिए य 2 प्रावकाहिए य / से कि तं इत्तरिए ? अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा-१ चउत्थभत्ते 2 छट्ठभत्ते 3 प्रमभत्ते 4 दसमभते ५बारसभत्ते 6 चउद्दसभत्ते 7 सोलसभत्ते 8 अद्धमासिए भत्ते 9 मासिए भत्ते 10 दोमासिए भत्ते 11 तैमासिए भत्ते 12 चउमासिए भत्ते 13 पंचमासिए भत्ते 14 छम्मासिए भत्ते, से तं इत्तरिए। से कि तं प्रावहिए ? प्रावकहिए दुधिहे पण्णत्ते / तं जहा–१ पानोवगमणे य 2 भत्तपच्चक्खाणे य। से कि तं पागोवगमणे / पानोवगमणे / दुविहे पणते / तं जहा- 1 वाघाइमे य 2 निवाघाइमे यनियमा अप्पडिकम्मे / से तं पाप्रोवगमणे / से कि तं भत्तपच्चक्खाणे ? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-१ वाघाइमे य 2 निव्वाघाइमे य णियमा सपडिकम्मे / से तं भत्तपच्चक्खाणे, से तं असणे / से कि तं प्रामोयरियानो ? दुविहा पण्णत्ता / तं जहा–१ दव्वोमोयरिया य 2 भावोमोयरिया य। से कि तं दव्योमोयरिया ? दुविहा पण्णता / तं जहा—१ उबगरणदव्योमोयरिया य 2 भत्तपाणदग्वोमोयरिया य। 1. 'गामे एगराइय' त्ति एकरात्री बासमानतया अस्ति येषां ते एकरात्रिका:, एवं नगरे पञ्चरात्रिका इति, एतच्च प्रतिमाकल्पिकानाश्रित्योक्तम, अन्येषां मासकल्पविहारित्वादिति / –औपपातिक सूत्र वत्ति, पत्र 36 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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