________________ समर्पण श्रमण भगवान महावीर की धर्म-देशना जिनकी रग-रग में परिव्याप्त थी, अर्हद्-वाणी को वरेण्यता तथा उपासना में जिनकी अडिग निष्ठा थी, जन-जन के कल्याण एवं श्रेयस् का सफल मार्ग जिन्हें पागम वाङमय में परिलक्षित था, आगमनिबद्ध, तत्त्व-ज्ञान को सर्वजनहिताय प्रसत करने की उदात्त भावना से जिन्होंने हमारी धर्म-संघीय परम्परा में आगमों की टब्बा रूप व्याख्या कर संप्रवर्तन किया। धर्म की आराधना एवं प्रभावना में सिंहतुल्य प्रात्मपराक्रम के साथ जो सतत गतिशील रहे, उन महामना, महान् श्रुतसेवी प्राचार्यवर्य श्री धर्मसिंहजी महाराज की पुण्य स्मृति में सादर, सविनय, सभक्ति समुपहृत ......" ---मधुकर मुनि (प्रथम संस्करण से) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org