________________ पूर्णभद्र चैत्य] चैत्य शब्द के सन्दर्भ में भाषावैज्ञानिकों का ऐसा अनुमान है कि किसी मृत व्यक्ति के जलाने के स्थान पर उसकी स्मृति में एक वृक्ष लगाने की प्राचीनकाल में परम्परा रही है। भारतवर्ष से बाहर भी ऐसा होता रहा है। चिति या चिता के स्थान पर लगाये जाने के कारण वह वृक्ष 'चंत्य' कहा जाने लगा हो। आगे चलकर यह परम्परा कुछ बदल गई। वृक्ष के स्थान पर स्मारक के रूप में मकान बनाया जाने लगा। उस मकान में किसी लौकिक देव या यक्ष आदि की प्रतिमा स्थापित की / यों उसने एक देवस्थान या मन्दिर का रूप ले लिया। वह चैत्य कहा जाने लगा। ऐसा होते-होते चैत्य शब्द सामान्य मन्दिरवाची भी हो गया। प्रस्तुत सूत्र में आये हुए चैत्य के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि जहाँ वह लौकिक दृष्टि से पूजा का स्थान था, अनेक मनौतियां लेकर लोग वहाँ आते थे, वहाँ नागरिकों में आमोद-प्रमोद तथा चैत्यं सुवर्ण-वर्णा, च 69 चेई मुकूट-सागरी 70 / चैत्यं स्वर्णा जटी चोक्ता 71 चेई च अन्य-धातुषु 72 / / चैत्यं राजा चक्रवर्ती 73 चेई च तस्य या: स्त्रियः 74 / चैत्यं विख्यात पुरुषः 75 चेई पुष्पमती-स्त्रियः 76 // चेई ये मन्दिरं राज्ञः 77 चैत्यं वाराह-संमत: 78 / चेई च यतयो धूर्ताः 99 चैत्यं गरुडपक्षिणि 80 / चेई च पद्मनागिनी 81 चेई रक्त-मंत्रेऽपि 82 // चेई चक्षुविहीनस्तु 83 चैत्यं युवक पूरुषः 84 // चैत्यं वासुकी नागः 85 चेई पुष्पी निगयते 86 / चैत्यं भाव-शुद्धः स्यात् 87 चेई क्षुद्रा च घंटिका 88 // चेई द्रव्यमवाप्नोति 89 चेई च प्रतिमा तथा 90 / चेई सुभट योद्धा च 91 चेई च द्विविधा क्षुधा 92 // चैत्यं पुरुष-क्षुद्रश्च 93 चैत्यं हार एव च 94 / चैत्यं नरेन्द्राभरण: 95 चेई जटाधरो नरः 96 / / चेई च धर्म-वार्तायां 97 चेई च विकथा पुनः 98 / चैत्यं चक्रपतिः सूर्यः 99 चेई च विधि-भ्रष्टकम् 100 / / चैत्य राशी शयनस्थानं 101 चेई रामस्य गर्भता 102 / चैत्य श्रवणे शुभे वार्ता 103 चेई च इन्द्रजालकम् 104 // चैत्यं यत्यासनं प्रोक्तं 105 चेई न पापमेव च 106 / चैत्यमुदयकाले च 107 चैत्यं च रजनी पुन: 108 / / चैत्यं चन्द्रो द्वितीयः स्यात् 109 चेई च लोकपालके 110 / चैत्यं रत्नं महामूल्यं 111 चेई अन्यौषधीः पुन: 112 // [इति अलंकरणे दीर्घब्रह्माण्डे सुरेश्वरवार्तिके प्रोक्तम् प्रतिमा चेइय शब्दे नाम ९०मो छ / चेइय ज्ञान नाम पांचमो छ / चेय शब्दे यति = साधु नाम ७म छ। पछे यथा योग्य ठामे जे नामे हवे ते जाणवो। सर्व चैत्य शब्दना प्रांक 57, अने चेइयं शब्दे 55 सर्व 112 लिखितं पू० भूधरजी तत्शिष्य ऋषि जयमल नागौर मझे सं० 1800 चैत सुदी 10 दिने] --जयध्वज, पृष्ठ 573-76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org