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________________ 12.] [भोपपातिकसूत्र मज्झछिन्णगा, वइकच्छछिण्णगा, हिययउप्पाडियगा, गपप्पारिवमा, बसप्पाख्यिगा, बसणुप्पाडियगा, गेब्धिण्णगा, तंच्छिण्णगा, कागणिमंसक्वावियगा, पोलंबियमा, लबियमा, घंसियगा, घोलियगा, फालियगा, पोलियगा,सूलाइयगा, सूलभिण्णगा, खारवत्तिया, वझवत्तिया, सोहपुच्छियगा, ववम्गिबडगा, पंकोसण्णगा, पंके खुत्तगा, वलयमयगा, बसमयगा, गियाणमयगा, अंतोसल्लमयगा, गिरिपडियगा, तरुपडियगा, मरुपडियगा, गिरिपक्खंदोलगा, तरुपक्खंदोलगा, मरुपक्खंदोलगा, जलपवेसिगा, जलणपवेसिगा, विसभक्खियगा, सत्थोवाडियगा, बेहाणसिया, गिज्ञापितुगा, कतारमवगा, बुरिभक्खमयगा, असंकिलिट्टपरिणामा ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु वेवसोएसु देवत्ताए ज्ववत्तारो भवति / तहि तेसि गई, तहि तेसि ठिई, तहि तेसि उवधाए पण्णते। तेसि णं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बारसवाससहस्माई ठिई पण्णत्ता! अल्पि मं मंते ! तेसि देवाणं घडी इवा, जुई इवा, जसे इ वा, बलेवा , बोरिए हवा, पुरिसरकारपरिष्कमे इवा? हंता अत्यि। ते पं भंते ! देवा परलोगस्स पाराहगा? गो इणळे समठे। ७०-जो (ये) जीव ग्राम, प्राकर-नमक आदि के उत्पत्ति-स्थान, नगर,-जिनमें कर नहीं लगता हो, ऐसे शहर, खेट-धूल के परकोटों से युक्त गांव, कर्बट-अति साधारण कस्बे, द्रोणमुख-जल-मार्ग तथा स्थल मार्ग से युक्त स्थान, मडंब--आस-पास गाँव रहित बस्ती, पत्तनबन्दरगाह अथवा बडे नगर, जहाँ या तो जल मार्ग से या स्थल मार्ग से जाना सम्भव हो. प्राश्रमतापसों के आवास, निगम-व्यापारिक नगर, संवाह पर्वत की तलहटी में बसे गांव, सन्निवेशझोंपड़ियों से युक्त बस्ती अथवा सार्थवाह तथा सेना प्रादि के ठहरने के स्थान में मनुष्य होते हैं--- मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं, जिनके किसी अपराध के कारण काठ या लोहे के बंधन से हाथ पैर बाँध दिये जाते हैं, जो बेड़ियों से जकड़ दिये जाते हैं, जिनके पैर काठ के खोड़े में डाल दिये जाते हैं, जो कारागार में बन्द कर दिये जाते हैं, जिनके हाथ काट दिये जाते हैं, जिनके पैर काट दिये जाते हैं, कान काट दिये जाते हैं, नाक काट दिये जाते हैं, होठ छेद दिये जाते हैं, जिह्वाएँ काट दी जाती हैं, मस्तक छेद दिये जाते हैं, मुंह छेद दिये जाते हैं, जिनके बायें कन्धे से लेकर दाहिनी काँख तक के देह-भाग मस्तक सहित विदीर्ण कर दिये जाते हैं, हृदय चीर दिये जाते हैं-कलेजे उखाड़ दिये जाते हैं, आँखें निकाल ली जाती हैं, दांत तोड़ दिये जाते हैं, जिनके अण्डकोष उखाड़ दिये जाते हैं, गर्दन तोड़ दी जाती है, चावलों की तरह जिनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं, जिनके * उखाड कर जिन्हें खिलाया जाता है, जो रस्सी से बांध कर कर खडडे आदि में लटका दिये जाते हैं, वृक्ष की शाखा में हाथ बाँध कर लटका दिये जाते हैं, चन्दन की तरह पत्थर आदि पर विस दिये जाते हैं, पात्र-रिपत दही की तरह जो मष दिये जाते हैं, काठ की तरह कुल्हाड़े से फाड़ दिये जाते हैं, जो गन्ने की तरह कोल्हू में पेल दिये जाते हैं, जो सूली में पिरो दिये जाते हैं, जो सूली से बांध दिये जाते हैं-जिनके देह से लेकर मस्तक में से सूली निकाल दी जाती है, जो खार के बर्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003480
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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