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________________ द्वितीय अध्ययन] जाए यावि होत्था / कामज्झयाए गणियाए सद्धि विउलाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहर। १६-तदनन्तर नगररक्षक पुरुषों ने सुभद्रा सार्थवाही की मृत्यु के समाचार जानकर उज्झितक कुमार को अपने घर से निकाल दिया और उसके घर को किसी दूसरे को (जो उज्झितक के पिता से रुपये मांगता था, अधिकारी लोगों ने उज्झितक को निकाल कर रुपयों के बदले उसका घर उस उत्तमर्ण को) सौंप दिया। अपने घर से निकाला जाने पर वह उज्झितक कुमार वाणिजग्राम नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ, चत्वर, राजमार्ग एवं सामान्य मार्गों पर, द्यूतगृहों, वेश्यागृहों व मद्यपानगृहों में सुखपूर्वक भटकने लगा। तदनन्तर बेरोकटोक स्वच्छन्दमति एवं निरंकुश बना हुआ वह चौर्यकर्म, द्यूतकर्म, वेश्यागमन और परस्त्रीगमन में आसक्त हो गया / तत्पश्चात् किसी समय कामध्वजा वेश्या के साथ विपुल, उदारप्रधान मनुष्य सम्बन्धी विषयभोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। 20 तए णं तस्स विजयमित्तस्स रनो अन्नया कयाइ सिरीए देवीए जोणिसूले पाउनभए यावि होत्था। नो संचाएइ विजयमित्ले राया सिरोए देवीए सद्धि उरालाई माण्णुस्सगाई भोग-भोगाई भुजमाणे विहरित्तए। तए णं विजयमित्ते राया अन्नया कयाई उज्झियदारयं कामज्झाए गणियाए गिहाम्रो निच्छभावेड, निच्छभावित्ता कामज्झयं गणियं अभितरियं ठावेइ, ठावइत्ता कामझयाए गणिपाए सद्धि उरालाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ / 20- तदनन्तर उस विजयमित्र राजा की श्री नामक देवी को योनिशूल (योनि में होने वाला वेदना-प्रधान रोग) उत्पन्न हो गया / इसलिये विजयमित्र राजा अपनी रानी के साथ उदार-प्रधान मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगने में समर्थ न रहा। अत: अन्य किसी समय उस राजा ने उज्झितककुमार को कामध्वजा गणिका के स्थान से निकलवा दिया और कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य सम्बन्धी उदार-प्रधान विषयभोगों का उपभोग करने लगा। २१–तए णं से उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए गिहाम्रो निच्छुभेमाणे कामज्झयाए गणिपाए मुच्छिए, गिद्ध, गढिए, प्रज्झोववन्ने अन्नत्य कत्थइ सुई च रइं च धिइंच प्रविन्दमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदभवसाणे तट्टोवउत्ते तयप्पिथकरणे तब्भावणाभाविए कामज्झयाए गणियाए बहणि अन्तराणि य छिड्डाणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं से उझियए दारए अन्नया कयाइ कामज्झयं गणियं अंतरं लभेइ, लभित्ता कामज्झयाए गणियाए गिह रहसियं अणुप्पविसइ, अणुप्पबिसित्ता. कामज्झयाए गणियाए सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरइ। २१–तदनन्तर कामध्वजा गणिका के घर से निकाले जाने पर कामध्वजा गणिका में मूच्छित (उसके ही ध्यान में मूढ---पागल बना हुआ) गृद्ध (उस वेश्या की ही आकांक्षा---इच्छा रखने वाला) ग्रथित (उसके ही स्नेहजाल में जकड़ा हुआ) और अध्युपपन्न (उस वेश्या की ही चिन्ता में प्रासक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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