________________ द्वितीय अध्ययन [ 26 कवच पहिनाए हुए थे, जो शरीररक्षक उपकरण (झूल) आदि धारण किये हुए थे, जिनके उदर (पेट) दृढ़ बन्धन से बांधे हुए थे। जिनके झूलों के दोनों तरफ बड़े बड़े घण्टे लटक रहे थे / जो नाना प्रकार के मणियों और रत्नों से जड़े हुए विविध प्रकार के ग्रैवेयक (कण्ठाभूषण) पहने हुए थे तथा जो उत्तर कंचुक नामक तनुत्राणविशेष एवं अन्य कवच आदि सामग्री धारण किये हुए थे। जो ध्वजा पताका तथा पंचविध शिरोभूषण' से विभूषित थे एवं जिन पर प्रायुध व प्रहरणादि लिए हुए महावत बैठे हुए थे अथवा उन हाथियों पर आयुध (वह शस्त्र जो फेंका नहीं जा सकता, जैसे तलवार आदि) और प्रहरण (जो शस्त्र फेंके जा सकते हैं, जैसे तीर आदि) लदे हुए थे। इसी तरह वहाँ अनेक अश्वों को भी देखा, जो युद्ध के लिये उद्यत थे तथा जिन्हें कवच तथा शारीरिक रक्षा के उपकरण पहिनाए हुए थे। जिनके शरीर पर सोने की बनी हुई झूल पड़ी हुई थी तथा जो लटकाए हुए तनुत्राण से युक्त थे। जो वखतर विशेष से युक्त तथा लगाम से अन्वित मुख वाले थे। जो क्रोध से अधरों-होठों को चबा रहे थे। चामर तथा स्थासक (आभूषण-विशेष) से जिनका कटिभाग परिमंडित-विभूषित हो रहा था तथा जिन पर सवारी कर रहे अश्वारोही-घुड़सवार आयुध और प्रहरण ग्रहण किये हुए थे अथवा जिन पर शस्त्रास्त्र लदे हुए थे। ___ इसी तरह वहाँ बहुत से पुरुषों को भी देखा जो दृढ़ बन्धनों से बंधे हुए लोहमय कुसूलादि से युक्त कवच शरीर पर धारण किये हुए, जिन्होंने शरासन-पट्टिका-धनुष खींचने के समय हाथ की रक्षा के लिये बांधी जाने वाली चमड़े की पट्टी--कसकर बांध रखी थी। जो गले में अवेयक-कण्ठाभरण धारण किये हुए थे। जिनके शरीर पर उत्तम चिह्नपट्टिका-वस्त्रखण्ड-निर्मित चिह्न-निशानी लगी हुई थी तथा जो आयुधों और प्रहरणों (शस्त्रास्त्र) को ग्रहण किये हुए थे। उन पुरुषों के मध्य में भगवान् गौतम ने एक और पुरुष को देखा जिसके हाथों को मोड़कर पृष्ठभाग के साथ रस्सी से बांधा हुआ था। जिसके नाक और कान कटे हुए थे। जिसका शरीर स्निग्ध (चिकना) किया गया था। जिसके कर और कटि-प्रदेश में वध्य पुरुषोचित वस्त्र-युग्म (दो वस्त्र धारण किया हुआ था अथवा बांधे हुए हाथ जिसके कडियुग (हथकड़ियों) पर रक्खे हुए थे अर्थात् जिसके दोनों हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई थी, जिसके कण्ठ में कण्ठसूत्र-धागे के समान लाल पुष्पों की माला थी, जो गेरु के चूर्ण से पोता गया था, जो भय से संत्रस्त, तथा प्राणों को धारण किये रखने का आकांक्षी था, जिसको तिल-तिल करके काटा जा रहा था, जिसको शरीर के छोटेछोटे मांस के टुकड़े खिलाए जा रहे थे अथवा जिसके मांस के छोटे-छोटे टुकड़े काकादि पक्षियों के खाने के योग्य किये जा रहे थे। ऐसा वह पापात्मा सैकड़ों पत्थरों या चाबुकों से मारा जा रहा था। जो अनेक स्त्री-पुरुष-समुदाय से घिरा हुआ और प्रत्येक चौराहे आदि पर उद्घोषित किया जा रहा था अर्थात जहाँ चार या इससे अधिक रास्ते मिले हए हों ऐसे स्थानों पर फूटे ढोल से उसके सम्बन्ध में घोषणा सुनाई जा रही थी जो इस प्रकार है हे महानुभावो ! इस उज्झितक बालक का किसी राजा अथवा राजपुत्र ने कोई अपराध नहीं किया अर्थात् इसकी दुर्दशा के लिए अन्य कोई दोषी नहीं है, किन्तु यह इसके अपने ही कर्मों का अपराध है-दोष है, जो इस दुःस्थिति को प्राप्त है ! 1. हाथी के शिर के पांच प्राभूषण बतलाए गए हैं, जैसे कि-तीन ध्वजाएँ और उनके बीच दो पताकाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org