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________________ 24 ] [विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध से णं तो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववज्जिहिइ / तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसियाए तिणि सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उवज्जिहिइ / / से णं तनो अणंतरं उच्चट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिइ / तत्थ वि कालं किच्चा, तच्चाए पुढवीए सत्त सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिति / से णं तो सीहेसु / तयाणंतरं चोत्थीए। उरगो, पंचमीए / इत्थीओ, छट्ठीए / मणुओ, अहे सत्तमीए। तो अणंतरं उव्वट्टित्ता से जाई इमाई जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छ-कच्छमगाह-मगर-सुसुमाराईणं अडतेरस-जाइकुल-कोडिजोणिपमुहसयसहस्साई, तत्थ णं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता, तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ / से णं तनो अणंतरं उट्टित्ता चउप्पएसु एवं उरपरिसप्पेसु, भुयपरिसप्पेसु, खहयरेसु, चरिदिएसु, तेइंदिएसु, बेइन्दिएसु, वणप्फइए कडुयरुक्खेसु, कडुयदुद्धिएसु, वाउ-तेउ-पाउ-पुढवीसु प्रणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायाइस्सइ / से णं तमो अणंतरं उव्वट्टित्ता सुपइट्टपुरे नगरे गोणत्ताए पच्चायाहिइ / से णं तस्थ उम्मक्कबालभावे अन्नया कयाइ पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्थेव सुपइट्ठपुरे नयरे सेट्टिकुलंसि पुमत्ताए पच्चायाहिस्सइ / से णं तत्थ उम्मक्कबालभावे विण्णायपरिणयमेत्ते जोवणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म म भवित्ता अगारामो अणगारियं पवहस्सह / से णं तत्थ इरियासमिए जाव (भासासमिए एसणासमिए प्रायाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिए, मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते, गुत्ते गुत्तिदिए गुत्त-) बंभयारी / से णं तत्थ बहूई वासाई सामण्णापरियागं पाउणित्ता पालोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उवज्जिहिइ / से णं तो अणंतरं चयं चइता महाविदेहे वासे जाइं कुलाई भवंति अड्डाई... " जहा दढपइन्ने, सा चेव बत्तव्वया, कलाओ जाव सिज्झिहिइ / ___ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पन्नत्ते त्ति बेमि। ॥पढमं अज्झयणं समत्तं // 31- (गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान्श्री ने कहा---) हे गौतम ! मृगापुत्र दारक 26 वर्ष के परिपूर्ण आयुष्य को भोगकर मृत्यु का समय आने पर काल करके इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंहकुल में सिंह के रूप में उत्पन्न होगा। वह सिंह महाअधर्मी तथा पापकर्म में साहसी बनकर अधिक से अधिक पापरूप कर्म एकत्रित करेगा। वह सिंह मृत्यु का समय आने पर मृत्यु को प्राप्त होकर इस रत्नप्रभापृथ्वी नामक पहली नरकभूमि में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है; --उन नारकियों में उत्पन्न होगा / अन्तररहित--विना व्यवधान के पहली नरक से निकलकर सीधा सरीसृपों (भुजाओं अथवा छाती के बल से चलने वाले तिर्यञ्च प्राणियों) की योनियों में उत्पन्न होगा। वहाँ से काल करके दूसरे नरक में, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की है, उत्पन्न होगा। वहाँ से निकलकर सीधा पक्षी-योनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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