________________ 14] [विपाकसूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध इसके उत्तर में भगवान् गौतम स्वामी ने कहा --'हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे पुत्र को देखने पाया हूँ !' तब मृगादेवी ने मंगापुत्र के पश्चात् उत्पन्न हुए चार पुत्रों को वस्त्र भूषणादि से अलंकृत किया और अलंकृत करके गौतमस्वामी के चरणों में डाला (नमस्कार कराया) और डाल करके (नमस्कार कराने के पश्चात्) इस प्रकार कहा-'भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं। इन्हें आप देख लीजिए !' १५-तए णं से भगवं गोयमे मियादेवि एवं क्यासी-"नो खलु देवाणप्पिए ! अहं एए तव पुत्ते पासिउं हन्त्रमागए / तत्थ णं जे से तव जे? मियापुत्ते दारए जाइअन्धे जाइअन्धरूवे, जं णं तुम रहस्तियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरसि तं णं अहं पासिउं हव्वमागए।' तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं क्यासी—'से के णं गोयमा! से तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा, जेणं तव एसम8 मम ताव रहस्सीकए तुम्भं हव्वमक्खाए, जो णं तुम्भे जाणह ?' / तए णं भगव गोयमे मियादेवि एवं वयासी-"एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगव महावीरे, तो णं अहं जाणामि / " १५---यह सुनकर भगवान् गौतम मगादेवी से बोले-हे देवानुप्रिये ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने के लिए यहाँ नहीं पाया हूँ, किन्तु तुम्हारा जो ज्येष्ठ पुत्र मृगापुत्र है, जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप है, तथा जिसको तुमने एकान्त भूमिगृह (भोंरे) में गुप्तरूप से सावधानी पूर्वक रक्खा है और छिपे-छिपे खानपान आदि के द्वारा जिसके पालन-पोषण में सावधान रह रही हो, उसी को देखने मैं यहाँ आया हूँ ! यह सुनकर मगादेवी ने गौतम से (आश्चर्यचकित होकर) निवेदन किया कि-हे गौतम ! वे कौन तथारूप ऐसे ज्ञानी व तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरे द्वारा एकान्त गुप्त रक्खी यह बात आपको यथार्थरूप में बता दी। जिससे आपने यह गुप्त रहस्य सरलता से जान लिया ? ___ तब भगवान् गौतम स्वामी ने कहा-हे भद्रे ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी हैं और प्रभु महावीर स्वामी ने ही मुझे यह रहस्य बताया है / १६-जाव च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धि एयमट्ठ संलवइ, तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था / तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एवं वयासो---'तुम्भे णं भन्ते! इहं चेव चिट्ठह जाणं अहं तुभं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि त्ति कटु जेणेव भत्त-पाणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टयं करेइ, करेत्ता कट्टसगडियं गिण्हइ, गिण्हित्ता विउलस्स असण-पाणखाइम-साइमस्स भरेइ, भरित्ता तं कट्ठसगडियं अणुकद्दमाणी अणुकढमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी----"एह णं तुम्भे भंते ! मम अणुगच्छह, जा गं अहं तुम्भं मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि।" तए णं से भगवं गोयमे मियादेवि पिट्टनो समणुगच्छइ। १६-जिस समय मृगादेवी भगवान् गौतमस्वामी के साथ संलाप-संभाषण-वार्तालाप कर रही थी उसी समय मृगापुत्र दारक के भोजन का समय हो गया / तब मगादेवी ने भगवान् गौतम स्वामी से निवेदन किया---'भगवन् ! आप यहीं ठहरिये, मैं अभी मृगापुत्र बालक को दिखलाती हूँ।' इतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org