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________________ दशम अध्ययन : अंजू] [111 पूर्वभव ४-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहेवासे इंदपुरे नामं नयरे होत्था / तत्थ णं इन्ददत्ते राया। पुढविसिरी नामं गणिया होत्था। वण्णो / ' तए णं सा पुढिविसिरी गणिया इंदपुरे नयरे बहवे राईसर जाव प्यभिइनो बहि चष्णप्पमोगेहि य जाव (हियउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य बसीकरणेहि य प्राभिप्रोगेहि य) अभिप्रोगेत्ता उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाइं भुजमाणी विहरइ / 4 हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में इन्द्रपुर नाम का एक नगर था / वहाँ इन्द्रदत्त नाम का राजा राज्य करता था। इसी नगर में पृथ्वीश्री नाम की एक गणिका–वेश्या रहती थी। उसका वर्णन पूर्ववत् कामध्वजा वेश्या की ही तरह जान लेना चाहिये। इन्द्रपुर नगर में वह पृथ्वीश्री गणिका अनेक ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि लोगों को (वशीकरण संबंधी) चूर्णादि के प्रयोगों से वशवर्ती करके मनुष्य संबंधी उदार-मनोज्ञ कामभोगों का यथेष्ट रूप में उपभोग करती हुई समय व्यतीत कर रही थी। ५---तए णं सा पुढिवीसिरी गणिया एयकम्मा एयपहाणा एयविज्जा एयसमायारा सुबहुं पावं कम्मं समज्जिणित्ता पणतीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं वावीसं सागरोवमट्टिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ना। 5- तदनन्तर एतत्कर्मा एतत्प्रधान एतद्विद्य एवं एतत्-आचारवाली वह पृथ्वीश्री गणिका अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन कर 35 सौ वर्ष के परम आयुष्य को भोगकर कालमास में काल करके छट्ठी नरकभूमि में 22 सागरोपम की उत्कृष्ट स्थितिवाले नारकियों में नारक रूप से उत्पन्न हुई। वर्तमान भव ६-सा णं तपो प्रणंतरं उध्वट्टित्ता इहेह बद्धमाणपुरे नयरे धणदेवस्स सस्थवाहस्स पियगु भारियाए कुच्छिसि दारियत्ताए उववन्ना। तए णं सा पियंगु भारिया नवण्हं मासाणं दारिया पयाया। नाम अंजुसिरी / सेसं जहा देववत्ताए। ६-वहां से निकल कर इसी वर्धमानपुर नगर में वह धनदेव नामक सार्थवाह की प्रियङ्ग भार्या की कोख से कन्या रूप में उत्पन्न हुई अर्थात् कन्या रूप से गर्भ में आई / तदनन्तर उस प्रियङ्ग भार्या ने नव मास पूर्ण होने पर उस कन्या को जन्म दिया और उसका नाम अञ्जुश्री रक्खा / उसका शेष वर्णन (नौवें अध्ययन में वर्णित) देवदत्ता ही की तरह जान लेना चाहिये / ७-तए णं से विजये राया पासवाहणियाए जहा वेसमणदत्ते तहा अंजु पासइ / नवरं अप्पणो अट्ठाए वरेइ, जहा तेयली जाव अंजू ए भारियाए सद्धि उपि जाव विहरइ / 1. द्वि. अ० सूत्र 3. 2. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग अ०-२.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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