________________ नवम अध्ययन : देवदत्ता] [105 २१-तदनन्तर किसी अन्य समय दत्त गाथापति शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र व मुहूर्त में विपुल अशनादिक सामग्री तैयार करवाता है और करवाकर मित्र, ज्ञाति, निजक स्वजन संबंधी तथा परिजनों को आमन्त्रित कर यावत् स्नानादि करके दुष्ट स्वप्नादि के फल को विनष्ट करने के लिए मस्तक पर तिलक व अन्य माङ्गलिक कार्य करके सुखप्रद आसन पर स्थित हो उस विपुल अशनादिक का मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धी व परिजनों के साथ प्रास्वादन, विस्वादन करने के अनन्तर उचित स्थान पर बैठ आचान्त (आचमन-कुल्ला किए हुए) चोक्ष (मुखादिगत लेप को दूर किए हुए) अत: परम शुचिभूत-परम शुद्ध होकर मित्र, ज्ञाति, निजक-स्वजन-सम्बन्धियों का विपुल पुष्प, माला, गन्ध, वस्त्र, अलङ्कार आदि से सत्कार करता है, सन्मान करता है / सत्कार व सन्मान करके देवदत्ता-नामक अपनी पुत्री को स्नान करवाकर यावत् शारीरिक आभूषणों द्वारा उसके शरीर को विभूषित कर पुरुषसहस्रवाहिनी-एक हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली शिविका-पालखी में बिठलाता है। बिठाकर बहुत से मित्र व ज्ञाति जनों आदि से घिरा हुआ सर्व प्रकार के ठाठ-ऋद्धि से तथा वादित्रध्वनि-बाजे-गाजे के साथ रोहीतक नगर के बीचों बीच होकर जहाँ वैश्रमण राजा का घर था और जहां वैश्रमण राजा था, वहाँ आया और आकर हाथ जोड़कर उसे बधाया / बधा कर वैश्रमण राजा को देवदत्ता कन्या अर्पण कर दी। २२–तए णं से वेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ट विउलं असणं 4 उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त नाइ० आमंतेइ, जाव सक्कारेइ सम्माइ सक्कारित्ता सम्माणित्ता पूसनंदिकुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ, दुरुहिता सेयापीएहि कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता वरनेवत्थाई करेइ, अग्गिहोमं करेइ, करेत्ता पूसनन्दिकुमार देवदत्ताए दरियाए पाणि गिण्हावेई। तए णं से वेसमणे राया पूसनंदिस्स कुमारस्स देवदत्तं दारियं सविधड्ढिोए जाव रवेणं महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं पाणिग्गहणं कारेइ, कारेत्ता देवदत्ताए दारियाए अम्मापियरो मित्त जाव परियणं च विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेण वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ। तए णं पूसनन्दी कुमारे देवादत्ताए सद्धि उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थरहि बत्तीसइबद्धनाडएहि उवगिज्जमाणे जाव (उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इ8 सद्द-फरिसरस-रूव-गंधे विउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे) विहरइ / 22- तव राजा वैश्रमण लाई हुई.अर्पण की गई उस देवदत्ता दारिका को देखकर बड़े हर्षित हुए और हर्षित होकर विपुल अशनादिक तैयार कराया और मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी व परिजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया। उनका पुष्प, वस्त्र, गंध, माला व अलङ्कार आदि से सत्कार-सन्मान किया। तदनन्तर कुमार पुष्यनन्दी और कुमारी देवदत्ता को पट्टक-पर बैठाकर श्वेत व पीत अर्थात् चाँदी और सोने के कलशों से स्नान कराते हैं। तदनन्तर सुन्दर वेशभूषा से सुसज्जित करते हैं। अग्निहोम-हवन कराते हैं। हवन कराने के बाद कुमार पुष्यनंदी को कुमारी देवदत्ता का पाणिग्रहण कराते हैं। तदनन्तर वह वैश्रमणदत्त नरेश पुष्यनंदी व देवदत्ता का सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् महान वाद्य-ध्वनि और ऋद्धिसमुदाय व सन्मानसमुदाय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org